बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में कवि-चित्रकार सिद्धेश्वर की काव्य-पुस्तक
समृद्ध काव्य-कल्पनाएँ कविता का ऋंगार करती हैं, यही कवि की शक्ति भी 
पटना, ०५ दिसम्बर। समृद्ध काव्य-कल्पनाएँ कविता का ऋंगार करती हैं। यही कवि की शक्ति भी है। ऋंगार से कविता रूपवती होती है। कविता का सौंदर्य ही पाठकों को कर्षित करता है। सौंदर्य-विहीन सपाट कविताएँ हृदय में उतर नहीं पातीं। इसीलिए काव्य-शास्त्र में अलंकार, प्रतीक, शब्द-संयोजन, छंद और काव्य-कल्पनाओं पर बल दिया गया है।

यह बातें शुक्रवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित सुप्रसिद्ध कवि-चित्रकार सिद्धेश्वर के काव्य-संकलन "शब्द हुए पंख" के लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि श्री सिद्धेश्वर एक परिश्रमी और काव्य-निष्ठा से समृद्ध कवि हैं। लोकार्पित पुस्तक का शीर्षक ही इनकी कवित्त-शक्ति का परिचय दे रहा है। "शब्द" जिनके पंख बन जाएँ, उन कवियों को काव्य-व्योम की अनंत-असीम वितान में उड़ान भरने से कौन रोक सकता है? कवि ने इस संग्रह के शिखर से उड़ान भरने की चेष्टा की है। आशा है कि व्योम के वितान पर इनकी अनेक काव्य-कृतियाँ अंकित दिखायी देंगी।

पुस्तक का लोकार्पण करते हुए, वरिष्ठ कवि-कथाकार और सम्मेलन के साहित्यमंत्री भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि सिद्धेश्वर जी एक ऐसे कवि हैं जिनकी सृजनशीलता अनवरत बनी हुई है। कलम और कूँची, दोनों का ही इन्होंने समानगति और अधिकार से प्रयोग किया है। इनके चित्र बहुत पहले से पत्र-पत्रिकाओं में छपते आ रहे हैं। कविताएँ और चित्रकारी साथ-साथ चली हैं। "शब्द हुए पंख" आज के समाज की छटपटाहट है। 

वरिष्ठ साहित्यकार डा किशोर सिन्हा ने कहा कि सिद्धेश्वर की क्षणिकाएँ अनेक प्रश्न उठाती हैं। इनकी रचनाओं में जीवन की समस्याएँ, संवेदनाओं के अभाव, सामाजिक वितंडाएँ आदि को भी शब्द मिले हैं। यह संतोष की बात है कि कवि की रचनाओं के मूल में निराशा नहीं, आशावाद है।

सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा शशि भूषण सिंह, डा ऋचा वर्मा, तारिक़ असलम "तस्नीम", मधुरेश नारायण, प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, डा मीना कुमारी परिहार, बच्चा ठाकुर, अविनाश बंधु, राम यतन यादव, सूर्य प्रकाश उपाध्याय, मृत्युंजय गोविन्द, वीणा गुप्ता, क्रमित सिन्हा, राजेश शुक्ल, इन्दु उपाध्याय , इन्दु भूषण सहाय, बाँके बिहारी साव आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए तथा कवि को शुभकामनाएँ दीं।

इस अवसर पर लोकार्पित पुस्तक के कवि सिद्धेश्वर ने अपनी शीर्षक कविता पढ़ते हुए कहा कि "शब्दों के पंखों पर सवार होकर नापना चाहता हूँ मैं कविता का विस्तृत आकाश! हवा, पानी, धूप को बनाना चाहता हूँ अपने जीवन का रक्षा-कवच"। एक अन्य कविता के आशय से उन्होंने जीवन की एक कड़वी सच्चाई से परिचय कराया कि - “दूसरों को दोष क्या दूँ मैं/ जबकि मुझे ही उबकाई आती है अपने ही चेहरे पर उग आए फफोलों को आईने में देख कर!” 
मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन राज प्रिया रानी ने किया।

Top