बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने महात्मा गाँधी और लाल बहादुर शास्त्री को किया श्रद्धा-पूर्वक स्मरण, हुई कवि-गोष्ठी
महात्मा ने कहा था- अंग्रेज कुछ दिन और रुक जाएँ तो कोई हर्ज नहीं, अंग्रेज़ी शीघ्र विदा हो 
पटना, ०३ अक्टूबर। "देश की एक राष्ट्र-भाषा हो" इस विचार के प्रबल समर्थक थे महात्मा गाँधी। वे मानते थे कि "हिन्दी" देश की राष्ट्र-भाषा होने की पूरी पात्रता रखती है और यही भारत को एक सूत्र में जोड़ेगी। अंग्रेज़ी को वे भारत की एक-सूत्रता और राष्ट्रीय भावना के विकास में सबसे बड़ी बाधा मानते थे। वे कहा करते थे कि अंग्रेज कुछ दिन और ठहर जाएँ तो कोई हर्ज नहीं किंतु देश से "अंग्रेज़ी" को शीघ्र विदा देनी चाहिए। 

यह बातें गुरुवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित गाँधी और शास्त्री जयंती की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि गांधी जी हिन्दी को "देश की राष्ट्रभाषा" मानकर संपूर्ण देश में इसके महत्त्व को समझाने और प्रचार में लगे रहे थे। उन्होंने अहिन्दी भाषी प्रदेशों में हिन्दी-प्रचार की अनेक संस्थाएँ स्थापित की। महाराष्ट्र के वर्धा में, जहाँ उनका आश्रम भी था, उन्होंने "राष्ट्रभाषा प्रचार समिति" की स्थापना की, जो आज भी बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन की भाँति चिरंजीवी और गतिमान है। 

डा सुलभ ने लाल बहादुर शास्त्री जी को स्मरण करते हुए कहा कि वे भारत के द्वितीय किंतु ("अद्वितीय प्रधानमंत्री" और सही अर्थों में भारत के लाल थे। वे महात्मा गाँधी के सच्चे अनुयायी और निष्ठावान देश-सेवक थे। राजनीतिक शुचिता और चारित्रिक-दृढ़ता के मानक आदर्श थे शास्त्री जी। देश के कर्णधारों को उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए।

वरिष्ठ साहित्यकार कमला प्रसाद ने कहा कि गाँधी जी सच्चे अर्थों में "महानायक" थे। उन्होंने स्वतंत्रता-आंदोलन को नयी दृष्टि दी। सत्य और अहिंसा की उनकी दृष्टि को संपूर्ण विश्व में मान्यता मिली और संसार के सभी समकालीन महापुरुषों ने उनके मार्ग को श्रेष्ठ बताया। शास्त्री जी ने "जय जवान और जय किसान" का नारा देकर देश के किसानों और वीर जवानों के महत्त्व से देश को परिचित कराया। उन्होंने देश के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ बलिदान दिया। 

सम्मेलन के अर्थमंत्री कुमार अनुपम, लेखिका विभा रानी श्रीवास्तव, शायरा शमा कौसर शमा, कवि सुनील कुमार, इंदु भूषण सहाय, राज आनन्द, नीता सहाय, संजय लाल महतो तथा स्वर्ग सुमन मिश्र ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन सम्मेलन के पुस्तकालय मंत्री ईं अशोक कुमार तथा धन्यवाद-ज्ञापन प्रबंध मंत्री कृष्ण रंजन सिंह ने किया। कवियों और कवयित्रियों ने अपने गीत ग़ज़लों से दोनों महापुरुषों को काव्यांजलि अर्पित की।

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