पद्मश्री प्रो जगदीश प्रसाद सिंह ने अपने साहित्य से समाज को प्रकाश प्रदान किया

साहित्य सम्मेलन में मनायी गयी जयन्ती, अगले वर्ष से दिया जाएगा पच्चीस हज़ार रूपए का स्मृति-सम्मान

पटना, ७ दिसम्बर। पद्म अलंकरण से विभूषित विद्वान प्रो जगदीश प्रसाद सिंह ने अपने साहित्य से समाज को प्रकाश दिया है। उन्होंने नब्बे वर्ष की आयु में भी लेखनी नहीं छोड़ी। जीवन के अंतिम समय तक लिखते रहे। वे एक तपस्वी साहित्य साधक थे। 

यह बातें रविवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में प्रो सिंह की जयंती पर आयोजित समारोह का उद्घाटन करते हुए, बिहार विधान परिषद के सभापति डा अवधेश नारायण सिंह ने किया। उन्होंने कहा कि जगदीश बाबू आदरणीय महापुरुष थे जिनको स्मरण करना देव-दर्शन जैसा पुण्यदायी है।

समारोह की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि प्रो सिंह अपने महान अवदानों के लिए अंग्रेज़ी साहित्य के प्राध्यापक और हिन्दी के महान सेवक के रूप में सदैव स्मरण किए जाते रहेंगे। वे यश की वासना से सर्वथा दूर साहित्य के एकांतिक तपस्वी थे। उनका साहित्यिक अवदान आने वाली अनेक पीढ़ियों को बल देता रहेगा। डा सुलभ ने कहा कि अगले वर्ष से साहित्य सम्मेलन द्वारा शोध-धर्मी युवा साहित्यकार को प्रो सिंह की स्मृति में पच्चीस हज़ार रूपए का स्मृति-सम्मान दिया जाएगा।

आरंभ में बिहार के विकास आयुक्त और प्रो सिंह के पुत्र मिहिर कुमार सिंह ने उनके व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रो जगदीश प्रसाद सिंह अंग्रेज़ी और हिन्दी भाषाओं में समान अधिकार रखने वाले दोनों ही भाषाओं के अप्रतिम साहित्यकार थे। उन्होंने अंग्रेज़ी में नौ उपन्यास हिन्दी में एक दर्जन से अधिक उपन्यास, उतने ही नाटक और दो सौ से अधिक कहानियाँ लिखी। उन्हें अनेक अलंकरणों से विभूषित भी किया गया, जिनमे बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन सम्मान और पद्मश्री अलंकरण सम्मिलित हैं। उन्होंने जैन मुनियों की भाँति अन्न-त्याग कर अपना पार्थिव शरीर छोड़ा।

समारोह के विशिष्ट अतिथि और मगध विश्व विद्यालय के कुलपति प्रो शशि प्रताप शाही ने कहा कि अंग्रेज़ी के प्राध्यापक होकर भी जगदीश बाबू ने जिस प्रकार हिन्दी की सेवा की वह अवर्चनीय है। मगध विश्वविद्यालय उनके नाम से, विश्वविद्यालय में एक चेयर स्थापित करेगा। 

पटना विश्वविद्यालय की कुलपति और प्रो सिंह की पुत्री डा नमिता सिंह ने कहा कि मेरे जीवन में जो भी उपलब्धियाँ हैं वे सब मेरे पूज्य पिता की देन है। वे एक चलते फिरते शब्द-कोश थे। उनका व्यक्तित्व और साहित्य समाज का मार्ग प्रशस्त करता है।

वरिष्ठ साहित्यकार और बिहार विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो राम प्रवेश सिंह ने प्रो जगदीश प्रसाद सिंह के नाटकों में मूल्यों की पक्षधरता, उसी विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक सुशांत कुमार ने डा जगदीश प्रसाद सिंह की उपन्यास दृष्टि तथा डा अर्चना कुमारी ने डा जगदीश प्रसाद सिंह की कहानियों में जीवन मूल्यों की विविधता पर अपने व्याख्यान दिए। सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा तथा डा सरिता सिंह ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने किया।

इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार डा जंग बहादुर पाण्डेय, कुमार अनुपम, डा रत्नेश्वर सिंह, सहेली मेहता, दा संजय सागर, डा पुष्पा जमुआर,प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, डा ऋचा वर्मा, डा मीना कुमारी परिहार, मोईन गिरिडिहवी, सिद्धेश्वर, प्रो रजनीश कुमार, ई अशोक कुमार, डा आर प्रवेश, नीता सहाय, रौली कुमारी, इन्दु भूषण सहाय, चंदा मिश्र, डा संजय कुमार, प्रो राकेश रंजन, डा अरुण कुमार, प्रो अनिल कुमार, तथा डा रमेश कुमार समेत सैकड़ों की संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।

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