राष्ट्रीय-चेतना के लिए एक राष्ट्रभाषा का उन्नयन नितान्त आवश्यक :विधानसभाध्यक्ष

पटना, २७ जुलाई। देश को एक सूत्र में बांधने के लिए राष्ट्रीय-चेतना का अभ्युदय आवश्यक है। इस हेतु संपूर्ण राष्ट्र से स्वस्थ-संवाद स्थापित करने के लिए एक राष्ट्रभाषा का उन्नयन और विस्तार भी आवश्यक है। संपर्क-भाषा के अभाव में, भारतवर्ष अपने ही भाई-बहनों से आवश्यक संवाद नहीं कर पा रहा है, जो वैचारिक एकता के लिए अनिवार्य है।

यह बातें रविवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, सम्मेलन से संबद्ध ज़िला शाखाओं के अधिकारियों के प्रान्तीय-साम्मेलन का उद्घाटन करते हुए, बिहार विधान सभा के अध्यक्ष नन्द किशोर यादव ने कही। श्री यादव ने कहा कि हिन्दी को राष्ट्र-भाषा बनाए जाने के लिए, सभी भारतवासियों को भाषायी पूर्वाग्रह का त्याग कर राष्ट्र-हित में चिंतन करना चाहिए। देश को अंग्रेज़ी और अंग्रेज़ीयत से बचाने के लिए यह अनिवार्य है, इस बात को देश के लोगों को अवश्य समझना होगा। हमें स्वयं भी यह विचार करना चाहिए कि हमारे घर में हिन्दी का सर्वाधिक प्रयोग हो। बिहार सरकार ने चिकित्सा विज्ञान की शिक्षा की भाषा हिन्दी कर दी है। इसी तरह अन्य तकनीकी विषयों की शिक्षा भी हिन्दी में होगी। भारत सरकार इस दिशा में गम्भीर है। हम निकट भविष्य में बड़े बदलाव देखेंगे।

सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि प्रांतीय कार्यसमिति के साथ सम्मेलन की ज़िला शाखाओं के अधिकारियों के इस प्रांतीय सम्मेलन के आयोजन का उद्देश्य सभी ज़िला शाखा को हिन्दी को राष्ट्र-भाषा बनाए जाने के संकल्प को बल देने और इस हेतु आंदोलन के लिए सज्ज करना है। उन्होंने ज़िलों के अधिकारियों को हिन्दी भाषा और साहित्य के उन्नयन के लिए आवश्यक योजनाओं से भी अवगत कराया तथा नियमित आयोजन और वर्ष में एक बार अधिवेशन के आयोजन की प्रेरणा दी। डा सुलभ ने संबद्ध ज़िलों के अधिकारियों को संबंधन-पत्र भी प्रदान किया और वार्षिक कार्यक्रमों की दिन-पत्री भी भेंट की और बताया कि अब से प्रत्येक वर्ष, महाधिवेशन की भाँति एक अलग से ज़िलों के अधिकारियों का प्रांतीय सम्मेलन आहूत हुआ करेगा। 

इसके पूर्व सभी प्रतिभागियों को तिलक-चंदन लगाकार और अंग-वस्त्रम प्रदान कर अभिनंदित किया गया।

इस अवसर पर, कटिहार के वरिष्ठ साहित्यकार कामेश्वर पंकज के लघुकथा-संग्रह अलगू और जुम्मन का लोकार्पण तथा संबद्ध ज़िला सम्मेलनों को संबंधन-पत्र भी प्रदान किया गया। समारोह के मुख्यअतिथि और राज्य उपभोक्ता संरक्षण आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति संजय कुमार, सम्मेलन के वरीय उपाध्यक्ष जियालाल आर्य, डा उपेंद्र नाथ पाण्डेय, डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, वरिष्ठ लेखिका किरण सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए। 

उद्घाटन सत्र के पश्चात विशेष-सत्र में, सारण ज़िला हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा ब्रजेंद्र कुमार सिन्हा, मुज़फ़्फ़र से डा कनक, बक्सर से महेश कुमार ओझा महेश, भोजपुर से डा बलिराज ठाकुर, डा नन्द जी दूबे, नालंदा से महेन्द्र कुमार विकल, लखिसराय से देवेंद्र सिंह आज़ाद, अरविंद कुमार भारती, वैशाली से शशि भूषण सिंह, कटिहार से डा कामेश्वर पंकज, पश्चिम चंपारण से आनंद किशोर मिश्र, सीतामढ़ी से दिनेश चंद्र द्विवेदी, कैमूर से प्रदीप कुमार पाण्डेय, समस्तीपुर से रामाश्रय प्रसाद सिन्हा, रोहतास से रंजन कुमार प्रसाद, गोपालगंज डा वसंत नारायण सिंह ने अपने-अपने ज़िला सम्मेलन के प्रतिवेदन प्रस्तुत किए तथा सम्मेलन के संकल्पों को पूरा करने के लिए अपनी वचन-बद्धता दुहरायी। सम्मेलन में प्रतिनिधियों को ज़िला सम्मेलन के संचालन में आ रही बाधाओं को दूर करने के मार्ग और उपाय भी बताए गए। 
कार्यक्रम का संचालन प्रचारमंत्री कुमार अनुपम ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा ने किया। 

सम्मेलन के मंत्रीगण डा पुष्पा जमुआर, ईं अशोक कुमार, प्रो सुशील कुमार झा, कृष्ण रंजन सिंह, डा मेहता नगेंद्र सिंह, डा पूनम आनन्द, विभा रानी श्रीवास्तव, डा जनार्दन मिश्र, डा प्रतिभा रानी, रेणु मिश्र, डा नागेश्वर यादव, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, आराधना प्रसाद, ब्रह्मानन्द पांडेय, नीरव समदर्शी,श्रीकांत व्यास, श्याम मोहन मिश्र अरुण कुमार निराला, सुरेंद्र मोहन, डा सुधांशु चक्रवर्ती, चंदा मिश्र, उदय नारायण सिंह, लता प्रासर, रामेश्वर नाथ मिश्र विहान, डा मीना कुमारी परिहार, अरुण गौतम,  अवध बिहारी आचार्य, नवनीत कृष्ण, श्याम मोहन मिश्र, प्रेम कुमार वर्मा, अरविन्द कुमार भारती, अनुराग मिश्र,  अश्विनी कविराज समेत विभिन्न ज़िलों के प्रतिनिधि-अधिकारियों ने अपनी उपस्थिति दी।

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