बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित हुई
हिन्दी काव्य-साहित्य में तुलसी और भारतेन्दु ही लोकनायक 
पटना, ०९ सितम्बर। हिन्दी काव्य-साहित्य में, महाकवि तुलसी दास के पश्चात भारतेन्दु ही लोक-नायक माने जाते हैं। आधुनिक हिन्दी को, जिसे आरंभ में "खड़ी-बोली" कहा गया, भारतेंदु ने अंगुली पकड़कर चलना सिखाया। इसीलिए आधुनिक हिन्दी साहित्य के इतिहास के आरंभिक-युग को "भारतेंदु-युग" के रूप में स्मरण किया जाता है। भारतेंदु के नाटक सत्य हरिश्चन्द्र और अंधेर-नगरी डेढ़ सौ साल बाद भी प्रासंगिक बने हुए हैं। उनके काव्य और नाटक जन-मानस को झकझोरते और आंदोलित करते हैं।

यह बातें मंगलवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, हिन्दी-पखवारा और पुस्तक चौदास मेला के ९वें दिन आयोजित भारतेंदु जयंती और संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि अद्भुत प्रतिभा के इस कवि ने मात्र ३५ वर्ष की अपनी कुल आयु में जो कमाल कर दिया वह हिन्दी साहित्य के इतिहास का स्वर्णिम अध्याय है। 

समारोह का उद्घाटन करते हुए पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति मान्धाता सिंह ने कहा कि भारतेन्दु को बचपन में पढ़ा था। उनके नाटक भी देखे। वे हिन्दी के पुरा-पूरुष थे।

समारोह के मुख्य अतिथि और लोकप्रिय संस्कृति-पोषक लक्ष्मी नारायण पोद्दार मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे, जिन्हें सम्मेलन अध्यक्ष ने अंग-वस्त्रम पहनाकर स्वागत किया।

जयंती पर "नाट्य-साहित्य में बिहार के योगदान" पर एक संगोष्ठी भी आयोजित हुई, जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में अपना विचार रखते हुए, सुप्रसिद्ध नाटक-कार और संस्कृति-कर्मी डा अशोक प्रियदर्शी ने कहा कि आरंभिक दिनों में बिहार में भी संस्कृत से अनूदित नाटकों के मंचन हुआ करते थे। आगे चलकर तीन प्रकार के मंच सामने आए। "पारसी थियेटर", "रामलीला मण्डली" और "कृष्णलीला मण्डली"। बाद में सक्रिए हुई नाट्य-संस्थाओं ने हिन्दी के साहित्यकारों से नाटक लिखवाए। बिहार में नाट्य-साहित्य के प्रणेता थे केशव राम भट्ट । उन्होंने नाटक लिखे भी और "पटना नाट्य मण्डली" की स्थापना कर मंचन भी किए। ऐतिहासिक नाटकों के महान नाटककार हुए डा चतुर्भुज, जिन्हें हिन्दी नाट्य-जगत में अभूतपूर्व लोकप्रियता मिली। पंडारक में एक "बिहारी क्लब" नामक नाटक-मण्डली की स्थापना की गयी, जिसके प्रमुख संचालकों में बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पिता कविराज राम लखन सिंह भी थे। बिहार में अनेक नाटक लिखे गए। अनेक नाटककार हुए। आज भी लिखे जा रहे हैं। किंतु पर्याप्त नहीं है। 

आकाशवाणी, पटना में सहायक निदेशक और कार्यक्रम-प्रमुख रहे साहित्यकार डा किशोर सिन्हा ने कहा कि नाट्य-साहित्य में बिहार की एक समृद्ध परंपरा है। लोकप्रियता की दृष्टि से बिहार में पहला नाम भिखारी ठाकुर का आता है, जिन्हें बिहार का "शेक्सपियर" कहा जाता है। रामवृक्ष बेनीपुरी का नाटक "आम्रपाली" अपने समय में अत्यंत लोकप्रिय हुआ था। 

रंगमंच के वरिष्ठ और सुप्रसिद्ध अभिनेता सुमन कुमार, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी और कवि बच्चा ठाकुर और डा रत्नेश्वर सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

इस अवसर पर आयोजित लघुकथा गोष्ठी में सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने "संतुलन", डा पूनम आनंद ने "पितृ-पक्ष", विभा रानी श्रीवास्तव ने "प्रत्यागत" तथा इन्दु भूषण सहाय ने "गरीब कृषक" शीर्षक से अपनी लघुकथा का पाठ किया। मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन ईं बाँके बिहारी साव ने किया।

सम्मेलन के भवन अभिरक्षक प्रवीर कुमार पंकज, डा विजय कुमार सिंह, प्रणय कुमार सिन्हा, जगदीश प्रसाद गुप्त, ईशा कुमारी, भरत कुमार, दुःख दमन सिंह, राकेश रंजन आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे। 

कल पखवारा के १०वें दिन ४ बजे से राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह जयंती एवं लघु-कथा गोष्ठी आयोजित है।

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