बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में
मूल्यों को समझने वाले एक गम्भीर कवि हैं प्रो समरेंद्र नारायण आर्य 



एकल काव्य-पाठ ऋंखला "मैं और मेरी कविता" के अंतर्गत सुनाए अनेको छंद 

पटना, ११ अगस्त। संस्कृत-साहित्य के विनम्र अध्येता प्रो समरेंद्र नारायण आर्य मूल्यों की गहरी समझ और साहित्य के प्रति निष्ठा रखने वाले एक गम्भीर कवि हैं। छंद, अलंकार, विम्ब आदि काव्य-शास्त्र के सौंदर्य-बोध में भी इनकी परिपक्वता और अभिव्यक्ति का सामर्थ्य इन्हें एक विशिष्ट कवि बनाता है। इनके साहित्य में जीवन के प्रति उत्साह और लोक-मंगल की अभिव्यक्ति हुई है। 

यह बातें, सोमवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में "गीतों के राज कुमार" के नाम से सुख्यात कवि गोपाल सिंह "नेपाली" की जयंती के अवसर पर आयोजित पुस्तक लोकार्पण-समारोह एवं एकल काव्य-पाठ ऋंखला "मैं और मेरी कविता" के दूसरे अंक की अध्यक्षता करते हुए,सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। समारोह के मुख्य अतिथि और पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने प्रो आर्य की तीन काव्य-पुस्तकों, "माँ का अमृत", "पहचानो अपनी शक्ति प्रबल" तथा संस्कृत-काव्य "गुरु शतकम" का लोकार्पण किया। 
"आज के कवि" के रूप में भी प्रो आर्य ने अपने अनेक छंदों का पाठ किया। 

नेपाली को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हुए, डा सुलभ ने कहा कि "मेरा धन है स्वाधीन कलम" के अमर रचनाकार, कविवर नेपाली एक ऐसे गीतकार थे, जिनसे चीन की सत्ता और सेना भी डरती थी। भारत-चीन युद्ध के दौरान लिखी गयी उनकी विश्रुत काव्य-रचना "हिमालय ने पुकारा" भारतीयों और भारतीय-सेना को ऊर्जा प्रदान की और मानसिक-बल प्रदान किया। उन्होंने अपनी इन पंक्तियों से कवि की महत्ता को सिद्ध किया कि- “हर क्रांति कलम से शुरू हुई, संपूर्ण हुई/ चट्टान जुल्म की कलम चली तो चूर्ण हुई/ हम कलम चला कर त्रास बदलने वाले हैं/ हम कवि हैं इतिहास बदलने वाले हैं।"

समारोह का उद्घाटन करते हुए न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि एक साहित्यकार का देह समाप्त हो सकता है, किंतु उसके विचार नहीं। ये अपनी कृतियों में सदैव जीवित रहते हैं। गोपाल सिंह नेपाली भी अमर कवि है। वे आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने लोकार्पित पुस्तकों के कवि को अपनी शुभकामनाएँ दीं।

आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि हिन्दी फ़िल्मों में चार सौ से अधिक गीत लिखने वाले अपने समय के अत्यंत लोकप्रिय कवि गोपाल सिंह "नेपाली" को वह सम्मान नहीं मिला, जिसके वे अधिकारी थे। उनकी स्मृति को जीवित रखने के लिए आज देश में कुछ भी नहीं है। 

सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, आचार्य विजय गुंजन, डा जंग बाहादुर पाण्डेय, डा पुष्पा जमुआर, विभा रानी श्रीवास्तव, डा मीना कुमारी परिहार, चितरंजन लाल भारती, ईं आनन्द किशोर मिश्र, सूर्य प्रकाश उपाध्याय आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया। 

सम्मेलन के भवन अभिरक्षक प्रवीर कुमार पंकज, साहित्य-सेवी इंदु भूषण सहाय, कुसुम देवी, डा प्रेम प्रकाश, सचीन बृजनाथ, सच्चिदानन्द शर्मा, राज कुमार चौबे, दुःख दमन सिंह, अभिराम, अश्विनी कविराज, आनन्द शर्मा, मोहम्माद फ़हीम आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे

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