राष्ट्रीय-ध्वज की भाँति संपूर्ण भारत में मिले हिन्दी को सम्मान : जीतन राम माँझी

"राष्ट्रभाषा-प्रहरी" नृपेंद्रनाथ गुप्त की मनायी गयी जयंती, पुस्तक "अनुचिंतन" तथा "चाक-चुम्बन" का हुआ लोकार्पण 

पटना, 0१ सितम्बर। प्रत्येक भारतीय को चाहिए कि वह भारत की भाषा "हिन्दी" को "राष्ट्रीय-ध्वज" सा सम्मान दे। भले ही हिन्दी सरकार द्वारा "राष्ट्र-भाषा" न घोषित की गयी हो, फिर भी पूरा देश इसे "राष्ट्रभाषा" मानता है। यह शीघ्र ही भारत की राष्ट्रभाषा घोषित हो, इसके लिए हम अपनी शक्ति लगाएँगे। 

यह बातें सोमवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आरंभ हुए, "हिन्दी पखवारा एवं पुस्तक चौदस मेला" का उद्घाटन करते हुए भारत के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्री जीतन राम माँझी ने कही। उन्होंने कहा कि साहित्य और साहित्यकार हर काल में समाज का मार्ग-दर्शन करता आया है। पुस्तकें यही काम करती हैं। स्वतंत्रता-संग्राम में साहित्यकारों ने जो काम किया, जिस तरह देश को जगाया, वह हमारा स्वर्णिम इतिहास है। दक्षिण में, कुछ लोग अपनी राजनीति चमकाने के लिए हिन्दी का विरोध करते हैं, हिन्दी का अपमान करते हैं। यह निंदनीय है। वे बोलने की स्वतंत्रता का दुरुपयोग करते हैं। 
श्री माँझी ने कहा कि साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष एवं अन्य अधिकारी एक शिष्ट-मण्डल के रूप में मेरे साथ राष्ट्रपति जी और प्रधानमंत्री जी से "राष्ट्र-भाषा" के लिए आग्रह हेतु भेंट करें। अवश्य ही प्रधानमंत्री जी हमारी बात मानेंगे।

इस अवसर पर श्री माँझी ने साहित्य सम्मेलन द्वारा प्रकाशित, वरिष्ठ लेखिका डा पुष्पा जमुआर की पुस्तक "अनुचिंतन" तथा पूर्व नौसैनिक तथा कवि संतोष सिंह "राख" के काव्य-संग्रह "चाक-चुम्बन" का लोकार्पण भी किया।

सभा की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि, १४ सितम्बर १९४९ को भारत की संविधान सभा ने "हिन्दी" को भारत सरकार के कामकाज की भाषा अर्थात "राज-भाषा" घोषित की थी, जिसके उपलक्ष्य में संपूर्ण भारतवर्ष में इस तिथि को "हिन्दी-दिवस" के रूप में मनाया जाता है। किंतु इसका कठोर सत्य यह है कि, संविधान सभा के इसी निर्णय के साथ जोड़े गए दो "परंतुकों" के कारण और बाद के दिनों में शासन में बैठे हिन्दी के प्रति द्रोह रखने वाले लोगों ने इसे आज तक "राज-भाषा" बनने नहीं दिया। अब तो भारत के लोग राजभाषानहीं राष्ट्र-भाषा चाहते हैं। भारत सरकार को चाहिए कि यथा शीघ्र हिन्दी को "भारत की राष्ट्रभाषा" घोषित करने के संबंध में आवश्यक विधि-सम्मत कार्रवाई करे, ताकि भारत की संविधान सभा के संकल्पों को पूरा किया जा सके।

आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए समारोह के स्वागताध्यक्ष और सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा कुमार अरुणोदय ने माननीय मंत्री से हिन्दी को देश की राष्ट्रभाषा घोषित करने के सम्मेलन की मांग को प्रधानमंत्री तक पहुँचाने तथा इसे मूर्त रूप देने में सहायक होने का अनुरोध किया। सम्मेलन के वरीय उपाध्यक्ष और वरिष्ठ साहित्यकार जियालाल आर्य, डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, लोकार्पित पुस्तकों के लेखक डा पुष्पा जमुआर, संतोष कुमार राख ने भी अपने विचार व्यक्त किए। 

इसके पूर्व सम्मेलन के पूर्व उपाध्यक्ष और राष्ट्रभाषा-प्रहरी के रूप में चर्चित साहित्यकार नृपेंद्र नाथ गुप्त की जयंती पर, उनके चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर, उन्हें श्रद्धापूर्वक स्मरण किया गया। मंच का संचालन कलामंत्री डा पल्लवी विश्वास ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन प्रबंधमंत्री कृष्णरंजन सिंह ने किया। 

इस अवसर पर, प्रो जे बी पाण्डेय, कार्यक्रम के संयोजक ईं अशोक कुमार, डा मेहता नगेंद्र सिंह, ईं बाँके बिहारी साव, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, डा शालिनी पाण्डेय, कवयित्री आराधना प्रसाद, डा कुमार इन्द्रदेव, प्रवीर कुमार पंकज, प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, जय प्रकाश पुजारी, शुभ चंद्र सिन्हा, मधुरानी लाल, ई आनन्द किशोर मिश्र, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, विभा रानी श्रीवास्तव, सागरिका राय, डा प्रतिभा रानी, डा रेणु मिश्र, इंदु उपाध्याय, डा दिनेश दिवाकर, नरेंद्र कुमार झा, प्रेमलता सिंह राजपुत, चंदा मिश्र, श्रीकांत व्यास, चितरंजन लाल भारती, मधुरानी लाल, शशि भूषण कुमार, डा मीना कुमारी परिहार, नीता सहाय, डा सुषमा कुमारी, सिद्धेश्वर, इन्दुभूषण सहाय, उत्तरा सिंह, सूर्य प्रकाश उपाध्याय, आनन्द मोहन झा, रौली कुमारी, अश्विनी कविराज, अरविंद अकेला समेत बड़ी संख्या में हिन्दी-सेवी और प्रबुद्धजन उपस्थित थे।

पुस्तक-मेला में, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के साथ बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के प्रकाशन विभाग की दीर्घाएँ लगी हुई हैं, जिनसे सम्मेलन-सभागार पुस्तकों से सजा हुआ है। सम्मेलन की दीर्घाओं में दर्जनों लेखकों की पुस्तकें १० प्रतिशत से लेकर ५० प्रतिशत की छूट पर मिल रही है। अनेक दुर्लभ पुस्तकों की प्रदर्शनी भी लगायी गयी है।

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