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व्हीलर सीनेट हॉल से उठी थी चिंगारी, विक्रम कुंवर की जुबानी
व्हीलर सीनेट हॉल से उठी थी चिंगारी, विक्रम कुंवर की जुबानी 1974 आंदोलन की ज्वाला
शशिभूषण कुंवर, पटना
फरवरी 1974 का पहला सप्ताह था. पटना विश्वविद्यालय परिसर का दिल माने जानेवाला व्हीलर सीनेट हॉल छात्रों से खचाखच भरा था. हवा में बेचैनी थी, आवाजों में रोष और आंखों में एक संकल्प... "अब और नहीं!". उसी हॉल से निकली वह पहली चिंगारी, जिसने पूरे देश में आंदोलन की आग भड़का दी और फिर जिसे इतिहास ने नाम दिया – जेपी आंदोलन.
उस दौर के चश्मदीद, जेल की दो-दो बार सजा काट चुके पूर्व मंत्री विक्रम कुंवर, जो उस समय मगध विश्वविद्यालय छात्र संघर्ष समिति के संयोजक और कॉमर्स कॉलेज के छात्र थे. वहीं से आंदोलन शुरू हुई थी. आज भी उस दोपहर को वैसे ही याद करते हैं जैसे कल की बात हो. उन्होंने बताया "हमने सीनेट हॉल में बैठक की थी. चर्चा का विषय था महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और शिक्षा में गिरावट. तय हुआ कि अब सड़कों पर उतरना ही पड़ेगा.
छात्रों ने 14 मांगें रखीं, और आंदोलन की रूपरेखा तैयार हुई. उसमें कम्युनिस्टों ने आंदोलन का बहिष्कार किया था. देखते ही देखते यह लपट पूरे बिहार में फैल गयी. आंदोलन की पहली बड़ी धमक 18 मार्च 1974 को पटना में सुनाई दी. विक्रम कुंवर बताते हैं कि प्रदर्शन के दौरान आंदोलन में असामाजिक तत्व घुस आए, तोड़फोड़ हुई, खादी भंडार जला, और विधानसभा के बाहर लाठीचार्ज हुआ.
उन्होंने बताया कि हमलोगों ने आंदोलन की साख बनाए रखने के लिए जयप्रकाश नारायण से नेतृत्व की मांग की. शुरुआती हिचक के बाद जेपी तब माने जब उन्होंने एक शर्त रखी. कहा कि छात्रों को "मुंह पर पट्टी, हाथ पीछे बांध कर मौन जुलूस" निकालकर दिखायें. जुलूस कदमकुआं से शुरू हुआ जो डाकबंगला चौराहा से गुजरता हुआ कांग्रेस मैदान में समाप्त हुआ. याद करते हुए वे बताते हैं "वो जुलूस एक प्रतीक था, लोकतंत्र की हत्या के विरुद्ध छात्रों की आवाज का. उस दिन जेपी आंदोलन की अगुवाई के लिए तैयार हो गये.
मीसा, जेल और अंदर की कहानी
मार्च 1974 के अंत में जयपुर होटल, पीरमुहानी में जब आंदोलन की अगली रणनीति पर बैठक हो रही थी, तभी विक्रम कुंवर, भवेश चंद्र प्रसाद और रघुवंश प्रसाद सिंह को पुलिस ने गिरफ्तार किया. संचालन समिति का सदस्य होने के नाते उनके ऊपर मीसा लगाया गया और बांकीपुर जेल भेज दिया गया. वे बताते हैं कि "हमने कोर्ट में भी आवाज़ बुलंद की. न्यायाधीशों से भी कहा कि वे भी भ्रष्टाचार और महंगाई के खिलाफ खड़े हों, लेकिन जवाब में हमें डिटेंशन में डाल दिया गया.
जनता सरकार का सपना और सीवान की गिरफ्तारी
मार्च 1975 में जैसे ही विक्रम कुंवर जेल से रिहा हुए, जेपी ने नारा दिया – "हर प्रखंड में जनता की सरकार बनेगी." बिहार में पहली जनता सरकार बनाने की जिम्मेदारी विक्रम कुंवर , लालू प्रसाद, नागार्जुन और जाफरी को सौंपी गयी और जेपी ने निर्देश दिया कि वे सीवान के पंचरुखी जाये और वहां पर जनता की सरकारी बनाये. जैसे ही वे छात्रों के साथ नारे लगाते हुए वहां पहुंचे, पुलिस पहले से तैनात थी. फिर से गिरफ्तारी और इस बार सीवान से छपरा, फिर बक्सर जेल भेज दिया गया. छपरा जेल में रहने के वक्त 25 जून 1975 को देश पर आपातकाल थोप दिया गया. विक्रम कुंवर बताते हैं "जेल के अंदर सन्नाटा था. कोई किसी से बात नहीं करता. वह एक डरावना समय था. न जेल सुरक्षित थी, न बाहर की दुनिया. "
शिक्षा में भ्रष्टाचार और विद्रोह की एक और चिंगारी
उन दिनों शिक्षा में भ्रष्टाचार का मामला भी आंदोलन का हिस्सा बना. तत्कालीन शिक्षा मंत्री विद्याकर कवि के बेटे को ग्रेस मार्क देकर पास कराया गया, जबकि वह फेल हुआ था. इस पर छात्रों ने मगध विश्वविद्यालय में उग्र प्रदर्शन किया. उनका कहना है कि जेपी आंदोलन सिर्फ सरकार के खिलाफ नहीं था, वह सिस्टम के खिलाफ भी था. साथ ही हर उस अन्याय के खिलाफ जो छात्र, गरीब और आमजन झेल रहे थे.
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