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लोकसभा चुनाव के नतीजे से संभल रही नरेन्द्र मोदी सरकार
21 वर्षों के बाद बदल दिया वाजपेयी सरकार की एनपीएस का स्वरूप सुनिश्चित पेशन
अरुण कुमार पाण्डेय
21 वर्ष बाद पुरानी पेंशन योजना की तरह लागू होगी यूपीएस । पीएम नरेन्द्र मोदी ने बदल दिया है वाजपेयी सरकार की एनपीएस का स्वरूप ।
अब फिर सुनिश्चित पेशन की यूपीएस लागू होगी।माना जा रहा है कि 18वीं लोकसभा के चुनाव में आशातीत सफलता नहीं मिलने भाजपा नेतृत्व भविष्य को लेकर चिंतित है।यूपीएस लागू करने का निर्णय इसी चिंता को दर्शाता है ।इसके पहले लैटरल इंट्री की कार्रवाई रोकी गयी है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस योजना को मंजूरी दे दी है और इससे 23 लाख केंद्रीय कर्मचारियों को फायदा होगा। 1 जनवरी, 2004 के बाद सरकारी सेवा में शामिल हुए कर्मचारियों को यूपीएस योजना का लाभ मिलेगा। यूपीएस के तहत कर्मचारियों को वेतन के 50 प्रतिशत की बराबर पेंशन मिलना सुनिश्चित किया गया है।
नई पेंशन योजना न्यूनतम 10 साल की सेवा के बाद सेवानिवृत्ति पर 10,000 रुपये प्रति माह की न्यूनतम पेंशन की गारंटी भी देती है। यूपीएस से 23 लाख केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों को लाभ होगा और अगर राज्य सरकारें भी यूपीएस को लागू करती हैं तो इस योजना से लाभ पाने वाले कर्मचारियों की संख्या बढ़कर 90 लाख हो जाएगी।
यूपीएस में मिलेंगे कई फायदे
यूपीएस की घोषणा करते हुए केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि कर्मचारी की मौत की स्थिति में उसके जीवनसाथी को एक सुनिश्चित पारिवारिक पेंशन प्रदान की जाएगी। साथ ही पेंशन पर महंगाई राहत भी मिलेगी जिसकी समय-समय पर महंगाई के हिसाब से गणना होगी। यूपीएस में कर्मचारियों का योगदान 10 प्रतिशत और सरकार का योगदान 18.5 प्रतिशत रहेगा। कई विपक्ष शासित राज्यों में पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) लागू की गई है। लोकसभा चुनाव में भी पुरानी पेंशन योजना लागू करने का मुद्दा गरम रहा था। यही वजह है कि लोगों की नाराजगी को देखते हुए सरकार ने एनपीएस की जगह यूपीएस लागू करने का फैसला किया है। ओपीएस वित्तीय रूप से टिकाऊ नहीं है क्योंकि यह अंशदायी नहीं है, और इससे सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ता रहता है।
केंद्र सरकार ने नई पेंशन व्यवस्था यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) लागू करने की घोषणा कर दी है।
अगले वर्ष पहली अप्रैल से यूपीएस, अस्तित्व में आ जाएगी।
हालांकि केंद्र एवं राज्यों के अनेक कर्मचारी संगठन, इस नई पेंशन व्यवस्था को छल बता रहे हैं। उन्होंने इसका विरोध करने की ठानी है।हालांकि केंद्र में स्टाफ साइड की राष्ट्रीय परिषद (जेसीएम) के सचिव शिवगोपाल मिश्रा ने यूपीएस के लिए प्रधानमंत्री मोदी का आभार जताया है।
आपको पता है NPS-UPS पेंशन योजना में क्या अंतर? आइए जानते हैं
: पेंशन के लिए न्यूनतम सेवा अवधि 25 साल होनी चाहिए, जबकि 10 साल की सेवा अवधि के लिए आनुपातिक पेंशन दी जाएगी.
मोदी सरकार ने शनिवार 24 अगस्त को यूनिफाइड पेंशन स्कीम (UPS) को मंजूरी दे दी है. जिसके तहत रिटायर कर्मचारियों को उनकी अंतिम सैलरी का 50% पेंशन के रूप में मिलेगा. यह नई पेंशन योजना 1 अप्रैल, 2025 से लागू होगी. सूचना मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि UPS के तहत सरकारी कर्मचारी रिटायर से पहले के अंतिम 12 महीनों के मूल वेतन का 50% पेंशन के रूप में प्राप्त करने के पात्र होंगे.
पेंशन के लिए न्यूनतम सेवा अवधि 25 साल होनी चाहिए, जबकि 10 साल की सेवा अवधि के लिए आनुपातिक पेंशन दी जाएगी. कर्मचारियों के पास अब NPS और UPS में से किसी एक योजना को चुनने का विकल्प होगा. हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों से पहले, मोदी सरकार ने कर्मचारियों की लंबे समय से लंबित मांगों को पूरा करते हुए एकीकृत पेंशन योजना (UPS) को मंजूरी दी है, जिसमें सुनिश्चित पेंशन का प्रावधान है.
UPS और NPS में क्या अंतर है?
UPS के तहत केंद्र सरकार के कर्मचारियों को फिक्स पेंशन मिलेगी. कर्मचारियों को 25 साल की सेवा के बाद सुनिश्चित पेंशन और एकमुश्त राशि मिलेगी. महंगाई दर के अनुसार पेंशन में वृद्धि होगी. 10 साल की सेवा के बाद 10,000 रुपये की न्यूनतम पेंशन की गारंटी है.
NPS में पेंशन की राशि बाजार के रिटर्न पर आधारित होती है, जो समय के साथ बदलती रहती है. इसमें कोई फिक्स पेंशन की गारंटी नहीं है. NPS 2004 में शुरू किया गया था और 2009 में इसे प्राइवेट सेक्टर के लिए भी खोल दिया गया था.
दोनों योजनाओं में कर्मचारी अपनी सैलरी का 10% योगदान करेंगे, जबकि सरकार UPS में 18.5% और NPS में 14% योगदान करेगी.
UPS में बाजार पर निर्भरता कम है, जबकि NPS में बाजार के उतार-चढ़ाव पर निर्भरता होती है.
UPS में बाजार की उतार-चढ़ाव की अनिश्चितता कम है, जबकि NPS में कोई सुनिश्चित पेंशन नहीं होती. अब लाख टके का सवा है कि 11 लाख केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को भी यूपीएस का ही लाभ मिलेगा?
इन बलों में पुरानी पेंशन बहाली का केस सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। । वजह, केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में यह बात कह सकती है कि ये बल भी अन्य कर्मचारियों की तरह यूपीएस के दायरे में आएंगे। यहां पर एक पेंच फिर भी फंसा रहेगा कि सरकार, सीएपीएफ को संघ के सशस्त्र बल मानेगी या नहीं। दिल्ली हाईकोर्ट और खुद इन बलों का एक्ट यह बात मानता है कि सीएपीएफ संघ के सशस्त्र बल हैं। अगर सरकार भी सर्वोच्च अदालत में यह बात मान लेगी कि हां ये संघ के सशस्त्र बल हैं तो इन्हें ओपीएस देना पड़ेगा।
केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में पुरानी पेंशन बहाली का केस सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। केस का आधार केवल एक ही है कि ये बल भारत संघ के सशस्त्र बल हैं या नहीं। केंद्र सरकार ने आर्मी, नेवी और एयरफोर्स को ही संघ के सशस्त्र बल माना है। इसी के चलते इन बलों में ओपीएस लागू है। पिछले दिनों सर्वोच्च अदालत ने इस मामले की सुनवाई की थी। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस निर्देश पर अंतरिम रोक लगाने की पुष्टि की है, जिसमें पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस), सीसीएस (पेंशन) नियम, 1972 के अनुसार, केंद्रीय अर्धसैनिक बलों/केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के कर्मियों पर भी लागू होने की बात कही गई थी।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील करने के लिए भारत संघ को अनुमति देते हुए यह आदेश पारित किया था। याचिकाकर्ताओं ने सर्वोच्च अदालत के समक्ष समानता का यह पक्ष रखा था कि जब संघ के सशस्त्र बल आर्मी, नेवी और एयरफोर्स को ओपीएस मिल रही है तो सीएपीएफ को भी मिले। वजह, ये बल भी संघ के सशस्त्र बल हैं।
सीएपीएफ के 11 लाख जवानों/अफसरों ने गत वर्ष पुरानी पेंशन बहाली के लिए दिल्ली हाईकोर्ट से अपने हक की लड़ाई जीती थी। इसके बाद केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को लागू नहीं किया। इस मामले में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से स्टे ले लिया। जब केंद्र सरकार ने स्टे लिया, तभी यह बात साफ हो गई थी कि सरकार सीएपीएफ को पुरानी पेंशन के दायरे में नहीं लाना चाहती। दिल्ली उच्च न्यायालय ने 11 जनवरी 2023 को दिए अपने एक अहम फैसले में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों सीएपीएफ को भारत संघ के सशस्त्र बल माना था।
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