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उपराष्ट्रपति से विपक्ष का टकराव उचित या अनुचित?
अरुण कुमार पाण्डेय
राज्यसभा के मौनसून सत्र के अंतिम दिन (9अगस्त) की कार्यवाही हंगामे की भेंट चढ गई। संसद में हंगामा अप्रत्याशित नहीं है। पक्ष-विपक्ष के बीच टकराव , एक-दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश, वार-पलटवार तो बात समझ में आती है। संसदीय लोकतंत्र में विचार-विमर्श,चर्चा और बहस में ऐसा होना स्वभाविक है।
सरकार की नीतियों और कामकाज से असहमति और विरोध करने का विपक्ष का अधिकार है और दायित्व भी। आखिर सदन में विपक्ष जनता के हितों के लिए ही सवाल करता है और सरकार भी जनता के लिए ही जबाब देती है। यह किसी भी पार्टी की सरकार या विपक्ष में किसी पार्टी से जुड़ा मसला नहीं है।
उप राष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति जगदीप धनकड से विपक्ष का आज का विवाद संसदीय लोकतंत्र के लिए दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है। सपा सांसद जया अभिताभ बच्चन के नाम को लेकर बवाल हो गया ।विपक्ष की ओर से आसन से माफी मांगने की बात हुई,यह अशोभनीय,अकल्पनीय एवं संसदीय परंपरा पर आघात है। यह तो तात्कालिक कारण बना है। सभापति के लहजे-तरीके से नाराज और क्षुब्ध विपक्ष उन्हें हटाने की तैयारी पहले से कर रहा था। कहा जा रहा है कि महाभियोग के प्रस्ताव पर विपक्ष के 87 सासंदों के दस्तखत हो चुके थे।
देश के संसदीय इतिहास में यह पहली बार होगा जव उप राष्ट्रपति सह उप सभापति को हटाने का प्रस्ताव आयेगा। सरकार से लड़ाई जगह सभापति से टकराव की विपक्ष की रणनीति कहीं से उचित नहीं है। राज्यसभा में ताकतवर विपक्ष बहुमत जुटा प्रस्ताव पारित भी करा लेगा तो लोकसभा में मुमकिन नहीं होगा। तब विपक्ष की भद्द पिटेगी । हां ,जगदीप धनकड की फजीहत करने का विपक्ष का मंसूबा जरुर पूरा होगा।
यह लाख टके का सवाल है कि विपक्ष का यह रवैया संसदीय लोकतंत्र के लिए स्वीकार्य है ? क्या यह उचित है या अनुचित?
राज्सभा ने विपक्ष की गैर मौजूदगी में उसके रवैये पर निंदा प्रस्ताव पारित किया है।पूर्व पीएम एचडी देवगौडा सहित कई नेताओं ने आसन से टकराव को दुखद कहा है। सभापति सदस्यों अधिकारों के संरक्षक होते हैं। ऐसे में उन्हीं से मुक्ति पाने की सोच हैरानी भरी है। वस्तुत:यह टकराव भी नरेन्द्र मोदी सरकार को ही चुनौती है।18वीं लोकसभा के चुनाव नतीजे में विपक्ष की ताकत बढ़ी है। परंतु भाजपा की अगुवाई वाले राजग को मिले बहुमत को कोई कैसे अस्वीकार कर सकता है। सदन में बहुमत के बल बनी सरकार है।भाजपा अकेले सबसे बड़ी पार्टी भी है।
विपक्ष की ओर से पडोसी बंग्लादेश केकेहल के राजनीतिक घटनाक्रम का डर भारत में दिखाने का दुस्साहस निंदनीय है। यह भडकाऊ नहीं तो और क्या है?
राज्यसभा के सभापति धनकड के बोलने का लहजा (टोन) को लेकर जया बच्चन के बोलने के बाद बेशक उनका भी टोन तीखा हो गया । सदन की पूरी कार्यवाही के दौरान ऐसी स्थिति की उपज कैसे और क्यों बनी? विवाद के विषय सभापति के कक्ष सलट जाने बाद सदन में भी उसकी चर्चा पर बल देने का आखिर ध्येय और उद्देश्य क्या था? सभापति निशाने पर थे । जया बच्चन की बात और सभापति के प्रतिकार से उलझन बढ गया। विपक्ष का आसन के प्रति विरोध स्वरूप वाकआउट हुआ।इसके बाद विपक्ष के रवैये पर निंदा प्रस्ताव भी पारित हुआ। राज्यसभा की कार्यवाही निर्धारित समय से तीन दिन पहले अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गई।
अब चर्चा के अनुसार सभापति को हटाने संबंधी महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी है। आगे यह मोदी सरकार से विपक्ष का टकराव बढने का ही संकेत है।
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