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बदलाव की ओर देश अग्रसर
अरुण कुमार पाण्डेय
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने तीसरे वर्ष के कार्यकाल में देश में कई महत्वपूर्ण बदलाव लाने की ओर अग्रसर हैं।इसी क्रम में
एक देश-एक चुनाव के प्रस्ताव पर केन्द्रीय कैबिनेट ने बुधवार (18 सितंबर) को मुहर लगा दी. विपक्षी दलों की आम सहमति बन तो 2029 के लोकसभा चूनाव के साथ विधानसभाओ के भी चुनाव का सिलसिला फिर शुरु हो सकता है। इसके पहले लोकसभा और विधानसभाओ का नये सिरे से
परिसीमन भी अवश्य॔भावी
है
2021 की लंबित जनगणना के साथ जातीय णणना
भी कराई जा सकती है।
इस मुद्दे पर विपक्ष गोलबंद है।
2029 के चुनाव के साथ महिलाओं के लिए 30% सीटों का आरक्षण भी लागू होना तय है।
पीएम नरेन्द्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल में जम्मू-कश्मीर से संबंधित संविधान की धारा 370 समाप्त करने और तीन तलाक को समाप्त करने का भी कानून बनाया। नागरिकता कानून में भी संशोधन हुआ।नोटबंदी का ऐतिहासिक निर्णय के साथ आईपीसी और सीआरपीसी को नया नाम और व्यापक संशोधन हुआ। नया संसद भवन बनने के साध अन्य महत्वपूर्ण काम और नये निर्माण हुए हैं।
इस बार
रोहिणी आयोग की रिपोर्ट के आधार पर ओबीसी के आरक्षण में वर्गीकरण होना अवश्य॔भावी है।
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर जानकारी देते हुए बताया कि संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में वन नेशन-वन इलेक्शन बिल पेश किया जाएगा.
उधर एक देश-एक चुनाव के प्रस्ताव की मंजूरी पर विपक्षी दलों ने विरोध जताया है.
इस बीच तीन केंद्रीय मंत्रियों को विपक्षी नेताओं से बातचीत का जिम्मा सौंपा गया है.
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू को विपक्षी दलों के साथ बातचीत करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है. केंद्र सरकार वन नेशन-वन इलेक्शन के मुद्दे पर सभी विपक्षी दलों का समर्थन पाने की कोशिश करेगी.
संविधान संशोधन से अपेक्षित इस बिल को संसद से स्वीकृत कराने के लिए दो-तिहाई सदस्योअं के समर्थन की दरकार होगी।अभी सत्तारूढ एनडीए के वर्तमान 18वीं लोकसभा में 293 सदस्य हैं । दो-तिहाई समर्थन के लिए कुल 364 सदस्य चाहिए। राज्यसभा में भी दो-तिहाई 164 सदस्य चाहिए। जबकि सत्तारूढ एनडीए के 121 सदस्य हैं। इसी कार तीन केंद्रीय मंत्रियों को विपक्ष सदस्यों से बातचीत कर उनके भी समर्थन सहमति पाने की पहल करने की जिम्मेदारी मिली है।
हर 15 साल में 10 हजार करोड़ रुपये होंगे खर्च
यदि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते हैं तो चुनाव आयोग (ईसी) को नई इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें खरीदने के लिए हर 15 साल बाद लगभग 10 हजार करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी. चुनाव आयोग ने सरकार को सूचित किया है कि हर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का जीवन 15 साल होता है, इस तरह "एक देश एक चुनाव" की स्थिति में एक ईवीएम का उपयोग तीन चुनावों के लिए ही किया जा सकेगा.
11.80 लाख मतदान केंद्रों की होगी जरुरत
चुनाव आयोग का अनुमान है कि लोकसभा चुनाव के लिए लगभग 11.80 लाख मतदान केंद्र स्थापित करने की आवश्यकता है. ईसीआई के अगर विधानसभा चुनाव भी एक साथ होते हैं तो उस स्थिति में अधिक ईवीएम की आवश्यकता होगी. प्रत्येक मतदान केंद्र पर ईवीएम के कम से कम दो सेट की आवश्यकता होगी. एक लोकसभा के लिए और दूसरा विधानसभा के लिए.
केंद्र सरकार ने वन नेशन-वन इलेक्शन पर पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द के नेतृत्व में एक उच्च स्तरीय समिति का 2 सितंबर, 2023 को गठन किया था. कमेटी के सदस्यों ने कई देशों की चुनाव व्यवस्था का अध्ययन करने के बाद 191 दिन में 18 हजार 626 पन्नों की एक रिपोर्ट तैयार की. इसकी प्रमुख सिफारिशें
सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 तक बढाई जाय।
चुनाव बाद त्रिशंकु विधानसभा बनने पर या अविश्वास प्रस्ताव के कारण विधानसभा भंग होने पर बाकी पांच साल के लिए नये सिरे से चुनाव कराये जायें।
प्रधम चरण में लोकसभा और विधानसभाओ के चुनाव कराये जाये।उसके बाद 100 दिनों के बाद स्थानीय निकायों के चुनाव हों। इन चुनावों लिए एक ही मतदाता सूची और मतदाता पहचान पत्र हो।
आजादी के बाद 1952,1957,1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभाओ के चुनाव एक साथ हुए थे। 1968 और 1969 में कई विधानसभा समय पूरा होने से पहले भंग कर दी गयी थी। उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। तभी से एकसाथ चुनाव का क्रम कहें या सिलसिला समाप्त हो गया।
एक देश एक चुनाव की पीएम नरेन्द्र मोदी की परिकल्पना पूरी करने के लिए संविधान में कई संशोधन अपेक्षित है।ल अभी लोकसभा या विधानसभाओ का कार्यकाल पांच वर्ष है।इसे घटाने-बढाने के लिए बडा बदलाव होगा।सदस्यों का कार्यकाल से संबंधित जन प्रतिनिधित्व कानून भी बदलाव होंगे। अभी तो संसंद द्वारा पारित बिल पर दो-तिहाई राज्यों की सहमति लेनी होगी। परंतु सभी विधानसभाओ से संबंधित होने के कारण सभी का अनुमोदन अपेक्षित होगा।
लोकसभा और विधानसभाओ के चुनाव एकसाथ कराने का विशेष रूप से क्शेत्रीय दलो का विरोध का भी खास कारण है।ऐसी स्थिति में तीन-चौथाई मतदाता एक ही जगह यथा एक पार्टी का समर्थन करते हैं। अलग चुनाव होने पर स्थिति बदल जाती है। लोकसभा और विधानसभाओ के चुनाव के मुद्दे भी अलग होते हैं ।
अगर एक साथ चुनाव का कानून बन जाता है तो 2029 में कई राज्य विधान सभाओं का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही उसे भंग करना होगा। साल 2023 में करीब 10 राज्यों में नई विधान सभा का गठन हुआ है, जिनका कार्यकाल 2028 तक है। यानी 2028 में फिर से वहां चुनाव होंगे लेकिन 2029 में ये सभी विधानसभाएं भंग हो जाएंगी। ऐसे में इन 10 राज्य विधानसभाओं और राज्य सरकारों का कार्यकाल केवल एक साल के करीब ही रह सकेगा। इन 10 राज्यों में हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, कर्नाटक, तेलंगाना, मेघालय, नगालैंड, त्रिपुरा और मिजोरम शामिल हैं।इनके अलावा कुछ ऐसे राज्य हैं, जहां 2027 में अगला विधान सभा चुनाव होना है। इन राज्यों में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गुजरात शामिल है। हालांकि, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम और केरल ऐसे राज्य हैं, जहां 2026 में विधान सभा चुनाव होने हैं। एक देश एक चुनाव की दशा में इन राज्यों की सरकारें तीन साल या उससे भी कम समय तक काम कर सकती हैं।
बिहार में नवंबर,2025 में और दिल्ली में भी अगले साल फरवरी में ही विधान सभा चुनाव प्रस्तावित हैं। इस लिहाज से यहां की सरकारें चार साल तक काम कर सकती हैं।करीब आधा दर्जन राज्य ऐसे भी हैं, जिनकी राज्य सरकारों और विधानसभा पर एक देश एक चुनाव का कोई खास असर नहीं पड़ने वाला है। इस श्रेणी में वैसे राज्य हैं, जहां 2024 में अब तक या तो चुनाव हो चुके हैं या आगे होने वाले हैं। इस श्रेणी में जो राज्य शामिल है, उनमें ओडिशा, आंध्र प्रदेश, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश शामिल हैं, जहां इस साल लोकसभा के साथ ही विधानसभा चुनाव हुए हैं। इसके अलावा हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया जारी है। महाराष्ट्र और झारखंड में इस साल नवंबर तक विधान सभा चुनाव होने हैं। वहां 2029 में एक साथ चुनाव होने से अधिकतम छह महीने के कार्यकाल पर असर पड़ सकता है।
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