नारी शक्ति वंदन  के आगे?
अरुण कुमार पाण्डेय 
नारी शक्ति वंदन हो गया। महिला आरक्षण का कानून बन गया।। दलीय सीमा तोड़कर इसका समर्थन मिला। इसे करने की होड सी लग गयी।अब इसके आगे?
देश के सियासी गलियारे में ओबीसी महिला आरक्षण की गूंज के साथ जातीय जनगणना की मांग तेज हो गयी है।
ओबीसी महिला आरक्षण के लिए पहले लोकसभा और विधानसभाओं  में पंचायत और नगर निकायों तरह ओबीसी के लिए लोकसभा और विधानसभाओ में भी सीटे सुरक्षित करनी होगी।तभी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की तरह कोटा के अंदर कोटा का मार्ग प्रशस्त होगा।अभी तो महिला आरक्षण को ही साकार दिखने में पांच वर्ष और इंतज़ार करना होगा।तब तक आजादी के बाद पहली बार कानून के सहारे नारीशक्ति वंदन करने की पहल को भुनाने की पूरजोर कोशिश होगी।दूसरी ओर आजादीके बाद पहली बार देश में जातीय गणना की मांग सदन से सड़क तक गूंजती रहेगी।
महिलाओं के 33%आरक्षण से  विधायिका में भागीदारी में विस्तार मिलेगा। परंतु आधी आबादी को उनकी संख्या के लिहाज से कम होगा।इससे निजात पाने लिए  राजनीतिक दलों को 33% से अधिक की संख्या में महिला उम्मीदवार बनाने की सोच दिखानी होगी।फिर रसूख,परिवारवाद, धनबल और बाहुबल की पृष्ठभूमि को तरजीह देने की सोच भी बदलनी होगी। 
अभी तो देश को आज़ादी मिलने के 76 वर्षों और भारतीय संविधान लागू होने के 73 वर्षों के  बाद  आधी आबादी को लोकसभा और विधानसभाओं में 33 फीसदी  भागीदारी सुलभ होने का कानूनी मार्ग प्रशस्त हो गया है। इसके लिए 128वां संविधान संशोधन के तहत "नारीशक्ति वंदन अधिनियम, 2023 " पर संसद की मंजूरी मिल गयी है। परंतु  वास्तविक लाभ के लिए अभी और पांच  वर्ष 2029 के लोकसभा चुनाव तक इंतजार करना होगा। इस लिहाज़ से नारी शक्ति वंदन अधिनियम मील का पत्थर साबित होगा,
देश की 142 करोड़ की जनसंख्या में  महिलाओं के  क़रीब आधी होने के आधार पर पंचायत और नगर निकायों में 50% आरक्षण लागू है। परंतु लोकसभा और विधानसभाओ में भी  महिलाओं के 33% आरक्षण के लिए 27 वर्षों तक भारी जद्दोजहद के बाद कानून बन पाया है। संसद के दोनों सदनों में प्राय: सभी दलों के समर्थन के परिणामस्वरूप दो-तिहाई बहुमत से   लोकसभा में पक्ष-विपक्ष के 454 सदस्य ने समर्थन में वोट किया।सिर्फ एआईआईएम के 2 सदस्यों ने अधिनियम के विरोध में वोट किया। राज्यसभा में हालांकि सभी सदस्यों ने समर्थन की हामी भरी परंतु दो-तिहाई बहुमत के समर्थन की संवैधानिक अनिवार्यता पूरी करने के लिए मतविभाजन कराया गया।इसमें बिल के समर्थन में 215 वोट और विरोध में0 वोट की गिनती आई।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की महिला आरक्षण को लेकर  प्रतिबद्धता और पहल रंग लाई है। उन्हें महिला आरक्षण सुलभ कराने का श्रेय मिला है।
1996 से  ही महिला आरक्षण  को लेकर प्रयास हो रहे है।  "नारीशक्ति वंदन अधिनियम, 2023 "   के जरिए लोक सभा और विधान सभाओं में ही महिला आरक्षण लागू होगा। संसद के उच्च सदन राज्य सभा और राज्यों की विधान परिषद में नहीं।
"नारी शक्ति वंदन अधिनियम,2023" के जरिए अनुच्छेद 239AA, अनुच्छेद 330, अनुच्छेद 332, अनुच्छेद 334 में कुछ नए प्रावधान जुड़ जाएंगे.  अनुच्छेद 239AA में संशोधन के जरिए दिल्ली विधान सभा में, अनुच्छेद 330 में संशोधन के जरिए लोक सभा में और अनुच्छेद 332 में संशोधन के जरिए राज्यों की विधान सभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीट आरक्षित हो जाएंगी।
लोक सभा और विधान सभाओं में महिला आरक्षण कब से लागू होगा, इसके लिए कोई तारीख़ अभी तय नहीं है. लेकिन विधेयक में जो प्रावधान किए गए हैं उससे मुताबिक महिला आरक्षण 2029 के लोक सभा चुनाव में लागू हो सकता है.
महिलाओं के लिए सीटों के आरक्षण के प्रभावी होने की समय सीमा को लेकर विधेयक के सेक्शन 5 में  स्पष्ट किया गया है. इस सेक्शन में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 334 के बाद अनुच्छेद 334A जुड़ जाएगा. अनुच्छेद 334A में चार सेक्शन होंगे, अनुच्छेद 334A में यह स्पष्ट किया गया है कि  महिला आरक्षण कब से लागू होगा. इस अनुच्छेद के पहले सेक्शन में  कहा गया है कि संविधान (एक सौ अट्ठाईसवां संशोधन) अधिनियम, 2023 के प्रारंभ होने बाद जो पहली जनगणना होगी, उसके बाद फिर परिसीमन का कार्य किया जाएगा. उसके बाद ही महिला आरक्षण के संवैधानिक उपबंध लोक सभा और विधान सभाओं में लागू होंगे. इस सेक्शन में यह भी स्पष्ट किया गया है कि शुरुआत में महिला आरक्षण की व्यवस्था 15 साल के लिए होगी. उसके बाद महिला आरक्षण को जारी रखना होगा, तो संसद से क़ानून बनाकर इसे आगे के लिए बढ़ाया जा सकता है.
वर्तमान लोक सभा के लिए 543 सीटों पर चुनाव होता है तो महिला आरक्षण क़ानून के तहत  181 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी. फिलहाल लोक सभा में 82 महिला सांसद हैं, इस लिहाज़ से यह क्रांतिकारी कदम है. इसी तर्ज़ पर राज्यों की विधान सभाओं में भी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी.
इस विधेयक में एक बात स्पष्ट कर दिया गया है कि महिला आरक्षण के तहत अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों से संबंधित महिलाओं के लिए भी एक तिहाई आरक्षण होगा.  कोटा के भीतर कोटा सिर्फ़ एससी और एसटी महिलाओं के लिए ही होगा.
128वां संविधान संशोधन के तहत अनुच्छेद 334A के सेक्शन 3 में स्पष्ट कर दिया गया है कि महिला आरक्षण रोटेशन के आधार पर लागू होगा और हर परिसीमन के बाद उसमें बदलाव देखने को मिल सकता है. उसी तरह से अनुच्छेद 334A के सेक्शन 4 में  यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि इस क़ानून का प्रभाव या असर मौजूदा लोक सभा या विधान सभाओं पर नहीं पड़ने वाला है. नए क़ानून के प्रावधान मौजूदा लोक सभा या विधान सभाओं के विघटन के बाद ही लागू होंगे. 
महिला आरक्षण के प्रावधान निकट भविष्य में लागू होने वाले नहीं है. इसके पहले जनगणना होगी।यह लोकसभा का 2024 के चुनाव बाद फिर शुरु हो सकती।फिलहाल जनगणना 2021 की प्रक्रिया कोरानाकाल से  रोक रखी गयी है। अनमानत: दो वर्ष में  जनगणना पूरी होने पर 2026 में लोकसभा और विधानसभाओ के परिसीमन होंगे। परिसीमन में लोकसभा और विधानसभाओ की सीटें बढने के साथ महिलाओं के लिए 33% सीटे तय कर आरक्षित होंगी।  लोक सभा में 2029 और अलग-अलग विधान सभाओं में उसके आमचुनाव के अलग-अलग तारीखों पर ये लागू हो सकते हैं.
महिला आरक्षण का आम समर्थन के बाबजूद विपक्षी दलों ने ओबीसी महिला आरक्षण भी लगे हाथ लागू करने के साथ जातीय गणना की भी आवाज बुलंद की है। यह भविष्य की राजनीति के लिए अहम सियासी मुद्दा बना रहेगा। बिहार में इसी वर्ष जातीय गणना कराकर अन्य राज्यों को राह दिखाई गयी है।1968 में केरल में भी इसी तरह की जातीय गणना हुई थी।आजाद भारत में पहली जातीय जनगणना की मांग अब जोर पकड़ती दिख रही है।1931 के बाद जातीय जनगणना की रिपोर्ट नहीं है।





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