सुप्रीम कोर्ट का अनुसूचित एससी/एसटी के भीतर उप-वर्गीकरण के समर्थन में 6-1 से फैसला बड़ा फैसला सुनाया है. शीर्ष अदालत ने आरक्षण के उद्देश्य से अनुसूचित जाति के उप वर्गीकरण को स्वीकार्य किया.
नई दिल्ली,01 अगस्त।
सुप्रीम कोर्ट ने आज अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) के भीतर उप-वर्गीकरण के मामले में बड़ा फैसला सुनाया है. शीर्ष अदालत ने आरक्षण के उद्देश्य से अनुसूचित जाति के उप वर्गीकरण को स्वीकार्य किया.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकारों को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों से क्रीमी लेयर की पहचान करने के लिए एक नीति बनानी चाहिए. पीठ 23 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. इसमें मुख्य याचिका पंजाब सरकार ने दायर की है. इसमें पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है.सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकारों को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों से क्रीमी लेयर की पहचान करने के लिए एक नीति बनानी चाहिए. पीठ 23 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. इसमें मुख्य याचिका पंजाब सरकार ने दायर की है. इसमें पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है.सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. संविधान पीठ ने साफ कर दिया है कि आरक्षण के लिए राज्यों के पास कोटा के अंदर कोटा बनाने का अधिकार है. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए राज्य सरकारें सब कैटेगरी बना सकती हैं. 7 जजों की पीठ में 6-1 के बहुमत से ये फैसला सुनाया है. इसमें जस्टिस बीआर गवई ने अलग दिए फैसले में कहा है कि राज्यों को एससी, एसटी वर्ग में क्रीमी लेयर की पहचान करनी चाहिए. उन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर करना चाहिए.
सब कैटेगरी का 7 में से 6 न्यायाधीशों ने समर्थन किया है. जस्टिस बेला त्रिवेदी ने इस मुद्दे पर असहमतिपूर्ण फैसला सुनाया. उन्होंने कहा कि ओबीसी आरक्षण के लिए इंदिरा साहनी मामले में सब कैटेगरी स्वीकार्य नहीं थी. राज्य संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत अधिसूचित अनुसूचित जाति सूची के साथ छेड़छाड़ नहीं कर सकते. राज्यों की सकारात्मक कार्यवाही संविधान के दायरे के भीतर होनी चाहिए.

Download Pdf
Top