सुप्रीम कोर्ट का EWS पर अहम फैसला, पांच में से तीन जज आरक्षण के पक्ष में-EWS आरक्षण को  सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक माना

सामान्य वर्ग के लिए आर्थिक आधार पर जारी रहेगा 10 फीसदी आरक्षण, सुप्रीम कोर्ट के 5 में 3 जजों ने जताई सहमति, सीजेआई समेत 2 जज खिलाफ
नेशनल डेस्क
नई दिल्ली,07 नवम्बर। 
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिय यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संवैधानिक बेंच में से तीन जजों ने आरक्षण के पक्ष में अपना फैसला दिया है. जबकि दो जजों ने असहमति जताई है। जस्टिस माहेश्वरी ने कहा कि आर्थिक आरक्षण संविधान के मौलिक ढांचे के खिलाफ नहीं है। 103वां संशोधन वैध है।जस्टिस बेला त्रिवेदी ने भी इस फैसले पर सहमति जताई है. उन्होंने कहा कि मैं जस्टिस माहेश्वरी के निष्कर्ष से सहमत हूं। एससी/एसटी/ओबीसी को पहले से आरक्षण मिला हुआ है. उसे सामान्य वर्ग के साथ शामिल नहीं किया जा सकता है। संविधान निर्माताओं ने आरक्षण सीमित समय के लिए रखने की बात कही थी लेकिन 75 साल बाद भी यह जारी है।
जस्टिस रविन्द्र भट ने जताई असहमति
आर्थिक आधार पर आरक्षण फैसला देते हुए जस्टिस रविन्द्र भट ने असहमति जताई है। रविन्द्र भट ने कहा कि आबादी का एक बड़ा हिस्सा SC/ST/OBC का है. उनमें बहुत से लोग गरीब हैं। इसलिए, 103वां संशोधन गलत है. जस्टिस एस रविंद्र भाट ने 50 प्रतिशत से ऊपर आरक्षण देने को भी गलत माना है।
उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 15(6) और 16(6) रद्द होने चाहिए. जबकि, चीफ जस्टिस ललित ने भी आर्थिक आधार पर आरक्षण का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि मैं जस्टिस रविंद्र भट के फैसले से सहमत हूं। यानी सुप्रीम कोर्ट ने 3-2 के बहुमत से EWS आरक्षण को बरकरार रखा है। इस मामले पर कोर्ट ने EWS कोटे की वैधता को चुनौती देने वाली 30 से ज्यादा याचिकाओं पर सुनवाई के बाद 27 सिंतबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
क्या है पूरा मामला
ये व्यवस्था 2019 में यानी पिछले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले केंद्रीय सरकार ने लागू की थी और इसके लिए संविधान में 103वां संशोधन किया गया था. 2019 में लागू किए गए ईडब्लूएस कोटा को तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी डीएमके समेत कई याचिकाकर्ताओं ने इसे संविधान के खिलाफ बताते हुए अदालत में चुनौती दी थी. आखिरकार, 2022 में संविधान पीठ का गठन हुआ और 13 सिंतबर को चीफ जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस दिनेश महेश्वरी, जस्टिस रवींद्र भट्ट, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पादरीवाला की संविधान पीठ ने सुनवाई शुरू की. 
याचिकाकर्ताओं की दलील
याचिकाकर्ताओं ने दलील है कि आरक्षण का मकसद सामाजिक भेदभाव झेलने वाले वर्ग का उत्थान था, अगर गरीबी आधार तो उसमें एससी-एसटी-ओबीसी को भी जगह मिले. ईडब्लूएस कोटा के खिलाफ दलील देते हुए कहा गया कि ये 50 फीसदी आरक्षण की सीमा का उल्लंघन है.
सरकार का पक्ष
वहीं, दूसरी तरफ सरकार की ओर से कहा गया कि ईडब्ल्यूएस तबके को समानता का दर्जा दिलाने के लिए ये व्यवस्था जरूरी है।केंद्र सरकार की ओर से कहा गया कि इस व्यवस्था से आरक्षण परा रहे किसी दूसरे वर्ग को नुकसान नहीं है।साथ ही 50 प्रतिशत की जो सीमा कही जा रही है, वो कोई संवैधानक व्यवस्था नहीं है, ये सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से आया है, तो ऐसा नहीं है कि इसके परे जाकर आरक्षण नहीं दिया जा सकता है।
EWS आरक्षण पर सरकार का संशोधन बरकरार रहेगा. इसकी वैधता पर पांच जजों ने फैसला सुनाया है, जिसमें  सीजेआई समेत चार जज EWS आरक्षण के पक्ष में हैं, जबकि पांचवें जज ने आरक्षण को गलत बताया है.जस्टिस रविंद्र भट्ट ने EWS आरक्षण का किया विरोध, कहा- ये भेदभाव करता है
EWS आरक्षण के पक्ष में हैं तीन जज
जस्टिस बेला त्रिवेदी ने भी EWS आरक्षण को सही करार दिया है. उन्होंने जस्टिस माहेश्वरी से सहमति जताई है. अब पांच में से 3 जज EWS आरक्षण के पक्ष में हैं.
जस्टिस माहेश्वरी ने EWS आरक्षण को संवैधानिक करार दिया
जस्टिस माहेश्वरी ने EWS आरक्षण को संवैधानिक करार दिया और कहा कि ये संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता. ईडब्ल्यूएस पर आरक्षण भारत के संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है. ईडब्ल्यूएस आरक्षण प्राप्त करने से वर्गों का बहिष्कार, समानता का उल्लंघन नहीं है.
 पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा 4 अलग-अलग निर्णय न्यायाधीशों द्वारा लिखे गए हैं। सुप्रीम कोर्ट की सूची में सीजेआई यूयू ललित और जस्टिस माहेश्वरी द्वारा एक संयुक्त निर्णय का उल्लेख है, जबकि अन्य सभी तीन न्यायाधीशों ने अपने फैसले खुद लिखे हैं। ऐसी स्थिति में बहुमत में आने वाला फैसला ही मान्य होगा।



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