राष्ट्रीय साहित्यिक-सह-सांस्कृतिक संस्था "शब्दवीणा" की नवादा जिला समिति ने रविवार को अपनी कार्यकारिणी की पहली बैठक एवं कवि गोष्ठी आयोजित की। छह अक्टूबर के पूर्वाह्न में महापर्व नवरात्रि के अवसर पर "शब्दवीणा" की नवादा जिला समिति (बिहार प्रदेश) के तत्वावधान में "शब्दवीणा काव्य अनुष्ठान" का आयोजन किया गया।
उल्लेखनीय बात यह रही कि कार्यक्रम का सीधा प्रसारण शब्दवीणा केन्द्रीय पेज से हुआ, जिस पर देश, प्रदेश से लेकर विदेश तक के लोग जुड़े और अपने प्रथम कार्यक्रम को सफल बना देने के लिए जिला समिति को खूब बधाइयाँ दी।
विदित हो कि संस्था की संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रश्मि प्रियदर्शिनी के द्वारा जिले के साहित्यकार डॉ. गोपाल निर्दोष को जुलाई में शब्दवीणा का प्रदेश प्रचार मंत्री मनोनित किया गया जबकि सितंबर में डॉ. निर्दोष ने अपनी कार्यकारिणी का विस्तार किया। इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए संस्था ने अपनी कार्यकारिणी की प्रथम बैठक एवं कवि गोष्ठी का आयोजन रविवार के पूर्वाह्न में स्थानीय गांधी इण्टर विद्यालय के सभागार में किया। 
दो पालियों में विभाजित इस आयोजन की पहली पाली में संस्था की मजबूती एवं विस्तार पर चर्चा की गई जबकि दूसरी पाली में राधा रानी, सुबोध कुमार, अरुण कुमार वर्मा, गुलाम सरवर, शफीक जानी नादां, गोपाल निर्दोष, संतोष कुमार, ब्रह्मानंद विश्वकर्मा, विनीता प्रिया जैसे कवियों ने अपनी-अपनी काव्य रचनाओं से लोगों को खूब प्रभावित किया और भरपूर वाहवाही एवं तालियाँ बटोरी।
राधा रानी ने जहाँ घरों में दैनिक रूप से पिसती महिलाओं की पीड़ा का वर्णन अपनी कविता क्यों प्रश्न चिह्न बन जाती हूँ के माध्यम से किया, वहीं अरुण कुमार वर्मा ने गाँव का मानवीकरण करते हुए अपनी कविता वर्षों बाद जब मैं अपने गाँव आया के माध्यम से गाँव की पीड़ा का बड़ा ही कारुणिक क्षेत्र खींचा। 
इसी कड़ी में सुबोध कुमार ने अपनी छब्बीस वर्ष पूर्व लिखी पहली कविता "क्या इंसान ही शैतान है ?" जैसे प्रश्न से लोगों के अंतर्मन को झकझोर दिया। जबकि, जहाँ ब्रह्मानंद विश्वकर्मा ने मेरा भी बयान लो जैसी व्यंग्य रचना से लोगों को चिंतित किया, वहीं संतोष कुमार ने एक बैसाखी इधर भी लाओ के माध्यम से बड़ी सारगर्भित प्रस्तुति दी। काव्य गोष्ठी को बढ़ाते हुए शायर गुलाम सरवर ने दिल से खेल ली एवं "बिंदिया" जैसी श्रृंगारपरक ग़ज़लों से समां बांध दी, वहीं बड़े उम्दा शायर शफीक जानी नादां ने हम तो सहरा में भी गुलशन का मजा लेते हैं जैसी एकाधिक रचनाओं से लोगों का दिल जीत लिया तो वहीं विनीता प्रिया ने बेटियों को समर्पित काव्य रचना की प्रस्तुति दी। जबकि, गोपाल निर्दोष ने बड़ों की अपेक्षा बचपन को निर्दोष बताते हुए "तभी हमलोग अच्छे थे" एवं "मैं और मेरे बाबा" जैसी कविताओं से यह संदेश देने का कार्य किया कि जिन बच्चों एवं बूढ़ों के मुंह में दांत नहीं होते हैं, वे ही एक दूसरे की बात को अच्छी तरह से समझते हैं एवं कभी आपस में झगड़ा नहीं करते हैं यानी बच्चे एवं बूढ़े निर्दोष होते हैं। 
कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्था के जिला उपाध्यक्ष डॉ. ब्रह्मानंद विश्वकर्मा ने किया जबकि स्वागत अध्यक्ष रहे संस्था के अध्यक्ष डॉ. गोपाल निर्दोष। मंच संचालन किया साहित्य मंत्री डॉ. विनीता प्रिया ने वहीं आगत अतिथियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापन किया शब्दवीणा के जिला अध्यक्ष डॉ. गोपाल निर्दोष ने।
 उल्लेखनीय बात यह भी रही कि पूरे कार्यक्रम का प्रसारण दीन दयाल वर्मा कर रहे थे, वहीं इसका ऑनलाइन संचालन "शब्दवीणा" की संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रश्मि प्रियदर्शनी कर रही थीं। 
विशेष उल्लेखनीय बात यह रही कि शब्दवीणा केन्द्रीय पेज से जुड़े उत्तराखंड से राष्ट्रीय सचिव महावीर सिंह वीर, उत्तर प्रदेश से अनुराग सैनी मुकुंद, अनुराग दीक्षित, रामदेव राही, पटना से राष्ट्रीय उपसचिव राजमणि मिश्र, छत्तीसगढ़ प्रदेश अध्यक्ष आशा मेहर किरण, बिहार से डॉ वीरेंद्र कुमार, पी के मोहन, डॉ रवि प्रकाश, गुजरात से नंद किशोर जोशी, गिरीश गुप्ता, पश्चिम बंगाल से कमल पुरोहित अपरिचित, रामनाथ बेखबर, पुरुषोत्तम तिवारी, दया शंकर मिश्र, झारखंड से अरुण कुमार यादव, दिल्ली, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, गोवा, मध्य प्रदेश आदि प्रदेश समितियों से जुड़े अनेक साहित्यानुरागियों ने रचनाकारों का अपनी टिप्पणियों द्वारा उत्साहवर्द्धन किया। शब्दवीणा की संस्थापक-राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रश्मि प्रियदर्शनी ने शब्दवीणा नवादा जिला समिति द्वारा आयोजित इस काव्य गोष्ठी को अविस्मरणीय बताते हुए कहा कि इस आयोजन से नवादा जिले में शब्दवीणा की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक यात्रा प्रारंभ हो गयी है। शब्दवीणा बिहार प्रदेश संरक्षक प्रो. सुबोध कुमार झा एवं प्रदेश अध्यक्ष डॉ वीरेन्द्र कुमार ने डॉ गोपाल निर्दोष एवं शब्दवीणा नवादा जिला समिति के सभी पदाधिकारियों एवं रचनाकारों को काव्य अनुष्ठान के सफल आयोजन हेतु हार्दिक शुभकामनाएँ दीं।

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