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आरक्षण की सियासत
आलेख:समाजसेवी नंदकिशोर प्रसाद चंद्रवंशी
आरक्षण कोटा में कोटा का औचित्य शीर्षक है गुलाम भारत में भी वंचित बहिष्कृत समाज के लिए आरक्षण का प्रावधान साहू जी महाराज के द्वारा प्रथम बार 1902 ईस्वी में किया गया था । इसी के तहत बाबा साहब अंबेडकर को विदेश में पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति प्रदान की गई थी और जब विदेश से लौटकर यहां आए तो बड़ौदा महाराज के शासन व्यवस्था में नौकरी दी गई यहीं से प्रतिनिधित्व हिस्सेदारी आरक्षण की शुरुआत हुम जब देश आजाद हुआ संविधान सभा का गठन हुई। बाबा साहब अंबेडकर को प्रारूप समिति का अध्यक्ष मनोनीत किया गया तब उन्होंने वंचित जमात के लिए प्रतिनिधित्व का वकालत किया और संविधान के अनुच्छेद 15(4),16(4) 330, 331, 332, 340, 341 ,342 ,में विशेष प्रावधान किया जिसमें सामाजिक शैक्षणिक आधार पर जो पिछड़े हुए हैं उनको सभी क्षेत्रों में प्रतिनिधित्व हिस्सेदारी भागीदारी मिले जिसे अनुसूचित जाति जनजाति अन्य पिछड़े वर्ग वर्ग के रूप में परिभाषित किया अनुसूचित जाति जनजाति का आरक्षण 22% आबादी के अनुरूप लागू हो गया लेकिन ओबीसी का आरक्षण लागू नहीं हुआ तो बाबा साहब अंबेडकर ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से कहा की अन्य पिछड़े वर्गों के लिए भी आरक्षण लागू होनी चाहिए इसके लिए भी आयोग बननी चाहिए इसी के तहत 1952 ईस्वी में काका का लेकर आयोग बना इस आयोग ने लगभग 2100 जातियों को ओबीसी के रूप में चिन्हित किया इस आयोग के सदस्य शिवदयाल चौरसिया ने कहा 2100 जातियों में से 837 जातियां अत्यंत पिछड़ा है ज्यादा पिछड़ा है जिनकी स्थिति अनुसूचित जाति जनजाति से भी बदतर है उन्हें भी अलग से 33% आरक्षण लागू होनी चाहिए नहीं तो बड़ी मछली छोटी मछली के हक को खा जाएगा लेकिन लागू पूर्ण रूपेण नहीं हुआ फिर 1978 ईस्वी में मंडल आयोग का गठन किया गया इस आयोग ने 3743 जातियों को ओबीसी के रूप में चिन्हित किया इसमें भी एक सदस्य एल आर नायक थे जिन्होंने 3743 जाति में से लगभग 2000 जातियों को पुनः अत्यंत पिछड़ा के रूप में परिभाषित चिन्हित किया और कहा कि अगर इन जातियों को अलग से आरक्षण आबादी के अनुरूप 33% नहीं मिलता है तो इन जातियों का विकास नहीं होगा क्योंकि छोटी मछली का शिकार बड़ी मछली कर लेता है मंडल आयोग का रिपोर्ट भी लागू नहीं हुआ लेकिन ओबीसी का संघर्ष जारी रहा बिहार के जननायक कहलन वाले कर्पूरी ठाकुर ने बिहार में मुंगेरीलाल आयोग का गठन करवाया इसी प्रकार अन्य राज्यों में भी आरक्षण संचालित आयोग बना 1989 में जनता दल की सरकार बनी और प्रधानमंत्री बीपी सिंह बने उप प्रधानमंत्री देवीलाल बने दोनों ने मिलकर आबादी के अनुरूप ओबीसी के लिए 27% आरक्षण लागू किया लेकिन मूल अति पिछड़े वर्गों के लिए 33% आरक्षण लागू नहीं किया जिसके कारण 3743 जातियों में से पिछड़े वर्ग के जितने भी दबंग जातियां थी उनको आरक्षण मिला और राजनीतिक दृष्टिकोण से सक्रिय होने के कारण 100% आरक्षण लिए और ले रहे हैं लेकिन काका कालेकर आयोग के सदस्य शिवदयाल चौरसिया के सिफारिश को और मंडल आयोग के सदस्य लार नायक के सिफारिश दरकिनार कर दिया गया पिछड़े वर्ग में जो अत्यंत पिछड़े वर्ग के 33% आबादी वाले बहिष्कृत वंचित जमात को आरक्षण का लाभ नहीं मिला जब मंडल कमीशन केंद्र में लागू हुआ तब जननायक कर्पूरी ठाकुर ने बिहार में 27 प्रतिशत आरक्षण का वर्गीकरण किया पिछड़ा अति पिछड़ा स्वर्ण और महिला को क्रमशः 12% अति पिछड़ों के लिए 8% पिछड़ों के लिए दो प्रतिशत स्वर्ण के लिए दो प्रतिशत महिलाओं के लिए एक प्रतिशत दिव्यांगों के लिए आरक्षण लागू किया जिसे कर पूरी फार्मूला के नाम से जाना जाता है इस तरह का फार्मूला पूरे भारत के लगभग आठ राज्यों में आज लागू है लेकिन मंडल आयोग का वर्गीकरण नहीं हुआ पिछड़े वर्ग के आबादी के अनुरूप हिस्सेदारी तो मिल गया उसमें जो अत्यंत पिछड़ा वर्ग था जिसकी आबादी 33% थी उसका आरक्षण आज भी नहीं मिला इसलिए संपूर्ण भारत में कर्पूरी फार्मूला लागू हो जरूरत है पिछड़े वर्गों के आरक्षण में वर्गीकरण करना जिसे आप कोटा में कोटा का सकते हैं सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टिकोण से आती पिछले वर्गों का विकास आरक्षण के द्वारा होनी चाहिए थी जो आज तक नहीं हुआ जब नरेंद्र मोदी 2014 में प्रधानमंत्री बने फिर अत्यंत पिछले वर्गों के द्वारा दिल्ली के जंतर मंतर में मंडल आयोग में वर्गीकरण के लिए धरना प्रदर्शन किया गया जिसमें मैं खुद शामिल था और लोगों को साथ में ले गया और संचालित भी किया परिणाम स्वरूप मंडल आयोग में वर्गीकरण के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में रोहिणी कमीशन का गठन हुआ जिसमें संभवत चार ग्रुप में बांटा गया है और कर्पूरी फार्मूले को विशेष तौर पर अपनाया गया है लेकिन वह भी आज लागू नहीं किया जा रहा है जिस प्रकार पिछड़े वर्ग के आरक्षण के संरक्षण और क्रियान्वयन के लिए पिछड़ा वर्ग आयोग बना उसी के जैसा अनुच्छेद 340 के तहत राष्ट्रीय अति पिछड़ा आयोग बने और यह आयोग पूरे भारत में पिछड़ों में जो अत्यंत पिछड़ा है उसको चिन्हित और परिभाषित करें और आबादी के अनुरूप अलग से आरक्षण का प्रावधान करें तभी समाज में निम्न अत्यंत पिछड़ा वर्ग का विकास होगा मैं स्पष्ट कहना चाहता हूं कि अनुसूचित जाति में जनजाति में पिछड़े वर्ग में जिन-जिन जातियों का विकास हुआ है उनको आरक्षण कोटा से अलग किया जाए अनुसूचित जाति जनजाति ओबीसी के सभी जातियों को अगर मिलाया जाएगा 6743 जातियां होती हैं जिसमें 12 00 अनुसूचित जाति की जातियां 1800 अनुसूचित जनजाति की जातियां 3743 ओबीसी की जातियां शामिल है लेकिन सर्वे किया जाए कि आज तक किन जातियों का विकास हुआ है और किन जातियां का विकास नहीं हुआ है तो आपको पता चलेगा सरकार को पता चलेगा की अनुसूचित जाति जनजाति पिछड़े वर्ग में शामिल 6743 जातियों में से लगभग 5000 जातियां अभी तक विकास से वंचित है इसीलिए सभी वर्गों के आरक्षण में कोटा में कोटा लागू होगा तभी सभी का विकास होगा वरना आज राजनीति में आरक्षण एक षड्यंत्रकारी राजनीति का एक हथियार बन गया है और कुछ नहीं ईडब्ल्यूएस जब नरेंद्र मोदी जी लागू किया उसमें भी खास कर ब्राह्मण जाति के निम्न वर्ग के लोगों को आज भी आरक्षण का फायदा नहीं मिल रहा है क्योंकि आरक्षण तालिका में सम्मिलित जातियों में से जो राजनीतिक दबंग जातियां हैं जिनका एमपी एमएलए विधान पार्षद विधानसभा सदस्य बने हैं और उद्योगपति हो गए हैं उन्हीं को आरक्षण प्राप्त है लेकिन आज भी अनुसूचित जाति जनजाति पिछड़ा में अत्यंत पिछड़ा ईडब्ल्यूएस में अत्यंत पिछड़ा का विकास आज भी नहीं हो रहा है आरक्षण जातीय मसला नहीं है ।आरक्षण हिस्सेदारी भागीदारी प्रतिनिधित्व का मामला है जिस प्रकार आज राजनीति में दबंग व्यक्तियों का वर्जस्याव हो गया है इस प्रकार आरक्षण कोटा में आने वाले जातियों में से जो दबंग जातियां राजनीति भी कर रही है उसी को आरक्षण मिल रहा है इसीलिए आरक्षण की समीक्षा होनी चाहिए खात्मा नहीं और साथ ही साथ सही संदर्भ में प्रतिनिधित्व, आरक्षण ,भागीदारी, हिस्सेदारी, को लागू करना है तो जातीय जनगणना भी जरूरी है
जननायक कर्पूरी फार्मूला के तहत बिहार में पंचायती राज व्यवस्था में भी पटना उच्च न्यायालय की दिशा निर्देश पर 20% आरक्षण लागू है जबकि 33% होना चाहिए आबादी के अनुरूप बिहार सरकार जो 2024 में जातीय जनगणना किया उसी के आंकड़ा के अनुसार अत्यंत पिछले वर्गों की आबादी 36% है तो आरक्षण 20% पंचायती राज व्यवस्था में क्यों जिस प्रकार अनुसूचित जाति जनजाति उत्पीड़न मामला को निपटारा हेतु एससी एसटी एक्ट लागू है जिससे उनका जान माल और प्रतिष्ठा को संरक्षित किया जाता है इस प्रकार अत्यंत पिछड़े वर्गों को भी दबंग व्यक्तियों के द्वारा अत्याचार किया जाता है इसलिए बिहार के संदर्भ में अनुसूचित जाति उत्पीड़न अधिनियम के तर्ज पर अत्यंत पिछड़ा उत्पीड़न निवारण अधिनियम लागू करें जननायक कर्पूरी ठाकुर के समय शिक्षा में जो आरक्षण लागू था उसके तहत अत्यंत पिछड़े वर्गों को स्कूल कॉलेज में शुल्क माफ था लेकिन आज इन लोगों को भी शुल्क देना पड़ता है सारांश के तौर पर आरक्षण जो लागू है किन्ही वर्गों के लिए वह सही संदर्भ में लागू नहीं है लोकसभा राज्यसभा विधानसभा विधान परिषद में अनुसूचित जाति जनजाति के लोगों को भी आरक्षण है जिसके तहत 131 एमपी एससी एसटी के होते हैं इनका भी समीक्षा करनी चाहिए जो जाति आरक्षण कोटा से मंत्रिमंडल में शामिल हो गए जनप्रतिनिधि चयनित हो गए तो अगले सत्र में उन जातियों को नहीं देना चाहिए और अत्यंत पिछड़े वर्गों के जातियों को अगर राजनीति में हिस्सेदारी मिलनी है आबादी के अनुरूप 36% तभी देश में समुचित जातियों का विकास होगा नहीं तो लोकतंत्र में बहुत सारी जातियां शीर्ष पर रहेगी अधिकतर जातियां गर्त में रहेगी यही लोकतंत्र की खूबसूरती हो गई है भारत में जो संविधान के प्रावधानों को खंडन करती है संविधान कहता है सभी के हिस्सेदारी भागीदारी होनी चाहिए सभी का विकास होना चाहिए प्राकृतिक संसाधनों में सभी की हिस्सेदारी होनी चाहिए राजनीति में सभी की भागीदारी होनी चाहिए विकास योजना में सभी जातियों का भागीदारी होनी चाहिए थी लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है राजनीति में आरक्षण आज एक कलंक के रूप में परिभाषित है जो यथार्थ बनना चाहिए जैसे जाती लोकतंत्र में भारत के संदर्भ में यथार्थ बन गया है इस तरह प्रतिनिधित्व हिस्सेदारी भी सभी जातियों के लिए यथार्थ बननी चाहिए राजनीति का षड्यंत्र का शिकार नहीं होना चाहिए
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