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बिहार में विशेष राज्य पर सियासत,बनेगा चुनावी मुद्दा
अरुण कुमार पाण्डेय
बिहार की सियासत में अब विशेष राज्य का दर्जा की मांग फिर अप्रैल-मई में अवश्य॔भावी चुनाव का प्रमुख एजेंडा बनना तय हो गया है। कैबिनेट की 22 नवम्बर को हुई बैठक में "अन्यान्य " प्रस्ताव के रूप में इसे स्वीकृत किया गया है। इसके पहले सीएम नीतीश कुमार इसके लिए आंदोलन शुरू करने की भी घोषणा कर चुके हैं। उन्होंने कहा है कि बिहार को आगे बढ़ाना है तो इसके लिए विशेष दर्जा पाना होगा। इसके लिए राज्य के हर कोने में आवाज उठाई जायेगी। विशेष राज्य का दर्जा मिल जाए तो दो साल में बिहार का विकास हो जाएगा।
सीएम नीतीश कुमार ने बैठक के बाद X पर पोस्ट कर जानकारी दी।
"देश में पहली बार बिहार में जाति आधारित गणना का काम कराया गया है। जाति आधारित गणना के सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक स्थिति के आंकड़ों के आधार पर अनुसूचित जाति के लिये आरक्षण सीमा को 16 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षण की सीमा को 1 प्रतिशत से बढ़ाकर 2 प्रतिशत, अत्यंत पिछड़ा वर्ग के लिये आरक्षण की सीमा को 18 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 प्रतिशत तथा पिछड़ा वर्ग के लिये आरक्षण की सीमा को 12 प्रतिशत से बढ़ाकर 18 प्रतिशत कर दिया गया है अर्थात सामाजिक रूप से कमजोर तबकों के लिये आरक्षण सीमा को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत कर दिया गया है। सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिये 10 प्रतिशत आरक्षण पूर्ववत लागू रहेगा। अर्थात इन सभी वर्गो के लिए कुल आरक्षण की सीमा को बढ़ाकर 75 प्रतिशत कर दिया गया है।
जाति आधारित गणना में सभी वर्गों को मिलाकर बिहार में लगभग 94 लाख गरीब परिवार पाये गये हैं, उन सभी परिवार के एक सदस्य को रोजगार हेतु 2 लाख रूपये तक की राशि किश्तों में उपलब्ध करायी जायेगी।
63,850 आवासहीन एवं भूमिहीन परिवारों को जमीन क्रय के लिए दी जा रही 60 हजार रूपये की राशि की सीमा को बढ़ाकर 1 लाख रूपये कर दिया गया है। साथ ही इन परिवारों को मकान बनाने के लिए 1 लाख 20 हजार रूपये दिये जायेंगे।
जो 39 लाख परिवार झोपड़ियों में रह रहे हैं उन्हें भी पक्का मकान मुहैया कराया जायेगा जिसके लिए प्रति परिवार 1 लाख 20 हजार रूपये की दर से राशि उपलब्ध करायी जायेगी।
सतत् जीविकोपार्जन योजना के अन्तर्गत अत्यंत निर्धन परिवारों की सहायता के लिए अब 01 लाख रूपये के बदले 02 लाख रूपये दिये जायेंगे।
इन योजनाओं के क्रियान्वयन में लगभग 2 लाख 50 हजार करोड़ रूपये की राशि व्यय होगी।
इन कामों के लिये काफी बड़ी राशि की आवश्यकता होने के कारण इन्हें 5 साल में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। यदि केन्द्र सरकार द्वारा बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिल जाय तो हम इस काम को बहुत कम समय में ही पूरा कर लेंगे। हमलोग बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की माँग वर्ष 2010 से ही कर रहे हैं। इसके लिए 24 नवम्बर, 2012 को पटना के गाँधी मैदान में तथा 17 मार्च, 2013 को दिल्ली के रामलीला मैदान में बिहार को विशेष राज्य के दर्जे के लिए अधिकार रैली भी की थी। हमारी माँग पर तत्कालीन केन्द्र सरकार ने इसके लिए रघुराम राजन कमेटी भी बनाई थी जिसकी रिपोर्ट सितम्बर, 2013 में प्रकाशित हुई थी परन्तु उस समय भी तत्कालीन केन्द्र सरकार ने इसके बारे में कुछ नहीं किया। मई, 2017 में भी हमलोगों ने विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए केन्द्र सरकार को पत्र लिखा था। आज कैबिनेट की बैठक में बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने हेतु केन्द्र सरकार से अनुरोध करने का प्रस्ताव पारित किया गया है। मेरा अनुरोध है कि बिहार के लोगों के हित को ध्यान में रखते हुये केन्द्र सरकार बिहार को शीघ्र विशेष राज्य का दर्जा दे।"
बिहार विधानमंडल के दोनों सदनों से भी इस मांग से संबंधित विशेष प्रस्ताव पारित कर भी केन्द्र सरकार को काफी पहले भेजा गया था। केन्द्र सरकार या बिहार में भाजपा के साथ सत्ता में रहते नीतीश कुमार विशेष राज्य बनाने की मांग नहीं पूरी करा सके। विशेष राज्य का दर्जा मिलने पर क्या होगा फायदाःएक्साइज और कस्टम ड्यूटीज, इनकम टैक्स एवं कॉरपोरेट टैक्स में बड़ी राहत मिलेगी. केंद्रीय बजट के प्रायोजित व्यय का 30 फीसदी विशेष दर्जा वाले राज्यों के विकास पर खर्च होता है. विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों को केंद्र सरकार से जो फंड मिलता है, उसमें से 90 फीसदी अनुदान होता है. सिर्फ 10 फीसदी कर्ज होता है, उस पर भी ब्याज नहीं लगता है. सामान्य राज्य को जो फंड मिलता है उसमें से सिर्फ 70 फीसदी अनुदान होता है और बाकी 30 फीसदी कर्ज. वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी का कहना है विशेष राज्य का दर्जा मिलने से केंद्रीय योजनाओं में बिहार की जो हिस्सेदारी है उसकी बचत होगी. यह 40,000 करोड़ के आसपास होगा जिससे बिहार में गरीबों के लिए योजना चलाई जा सकेगी.
पीएम नरेन्द्र मोदी ने विशेष राज्य का दर्जी के बदले आरा की जनसभा में जब बिहार के लिए 1.25 लाख लाख करोड रुपए का विशेष पैकेज की घोषणा की थी तब नीतीश कुमार ने तंज और व्यंग करते हुए कहा था इसमें कुछ भी विशेष नहीं है
यह पुरानी निर्माणाधीन और पहले से स्वीकृत योजनाओं को विशेष पैकेज के रूप में परोस कर बिके साथ छल हुआ है। यह केंद्र सरकार के विवेक और तय मानदडों के आधार पर राजनीतिक निर्णय होता है। मानदंड के हिसाब से पहाड़ी क्षेत्र हो,दुर्गम क्षेत्र हो,कम जनसंख्या,आदिवासी इलाका,अंतर्राष्ट्रीय सीमा से जुड़ा,प्रति व्यक्ति आय कम और कम राजस्व आय वाला राज्य हो तो उसे विशेष राज्य का दर्जा मिलता है। 1969 में सबसे पहले असम, नागालैंड और जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिये जाने के बाद अरुणाचल, हिमाचल, सिक्किम, मिजोरम और उत्तराखंड को विशेष राज्य का दर्जा मिला है।
बिहार से नेपाल से आनेवाली नदियों प्रत्येक वर्ष जानमाल की बर्बादी-तबाही,गरीबी,पिछड़ेपन और अधिक आबादी के मद्देनजर विशेष राज्य की मांग होती रही है। नवंबर, 2000 में झारखंड के अलग राज्य बनने से वन और खनिज संपदा सहित बोकारो स्टील संयंत्र, एचईसी,टाटा उद्योग ,पतरातू थर्मल ,बीआईटी,मेसरा,सहित कई अन्य प्रमुख संस्थानों के मुख्यालयों से भी बिहार को हाथ धोना पड़ा था।
ऐसे भी विशेष राज्य का दर्जा संवैधानिक अधिकार में नहीं आता।
अब लाख टके का सवाल बन गया है कि सीएम नीतीश कुमार के विशेष राज्य के चुनावी दांव पर पीएम नरेन्द्र मोदी कौन सा कदम उठायें? अभ विशेष राज्य का दर्जा के लिए केन्द्र सरकार के मानक पर बिहार नहीं आता। बिहार की ही मांग पर केन्द्र सरकार ने रघुरामराजन कमिटी बनाई थी। उसने किसी भी राजा को विशेष राज्य का दर्जा देने के औचित्य को हो खारिज कर दिया था।इस कमिटी में बिहार से लालू-नीतीश के पसंदीदा अर्थशास्त्री शैवाल गुप्ता भी सदस्य थे। सितम्बर, 2013 में इसकी रिपोर्ट भी आई पर बिहार की बात नहीं बनी।
सीएम नीतीश कुमार ने खुद स्वीकारा भी उनकी यह मांग पुरानी है। पर यह बिहार के हक और हित में होने के कारण जब तक पूरी नहीं होगी,इसको लेकर संघर्ष जारी रहेगा।
इसी मुद्दे पर पूर्वउप मुख्यमंत्री एवं भाजपा के सासंद *सुशील कुमार मोदी*ने 23 नवम्बर को प्रेस कांफ्रेंस में कहा -– मरे हुए घोड़े पर कितना भी चाबुक चलायें, दौड़ने वाला नहीं: नीतीश सरकार की ओर से केंद्र को विशेष राज्य के दर्जे से संबंधित अनुशंसा भेजने पर सियासत शुरू है. पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने कहा कि जब 14 वें वित्त आयोग ने विशेष राज्य की अवधारणा को ही अमान्य कर दिया है. अब किसी भी राज्य को विशेष दर्जा नहीं दिया जा सकता, तब इस मुद्दे पर बिहार सरकार का कैबिनेट से पारित प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजना सिर्फ एक राजनीतिक स्टंट है. इस मरे हुए घोड़े पर नीतीश कुमार कितना भी चाबुक चलायें, घोड़ा दौड़ने वाला नहीं. सुशील मोदी ने सवाल उठाये कि नीतीश कुमार और लालू प्रसाद केंद्र सरकार में ताकतवर मंत्री रहे, तब इन लोगों ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा क्यों नहीं दिलवाया.75 साल Congress, RJD, JDU अलग-अलग और अब एक साथ मिलकर राज कर रहे हैं, इसके बावजूद हर मानक पर बिहार सबसे पिछड़ा है तो इसके लिए यही लोग जिम्मेवार है
नीतीश – लालू केंद्र में ताकतवर मंत्री थे। इन लोगों ने केंद्र में रहते हुए बिहार को विशेष राज्य का दर्जा क्यों नहीं दिलवाया
1.5 करोड़ लोगों के हस्ताक्षर से डॉ. मनमोहन सिंह को ज्ञापन, रामलीला मैदान में रैली के समय केंद्र में किसकी सरकार थी। लालू के समर्थन से केंद्र सरकार चल रही थी।
– उस समय नीतीश कुमार ने आरोप लगाया था कि लालू यादव ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा रुकवा दिया
– तेजस्वी यादव अपने पिता से पूछे कि उन्होंने क्यों रुकवा दिया? क्यों नहीं होने दिया?
Congress बताएं कि 2004 से 2014 तक UPA की सरकार थी, उस समय बिहार को विशेष राज्य का दर्जा क्यों नहीं मिला?
14वें और 15वें वित्त आयोग ने विशेष राज्य के दर्जे की अवधारणा को ही समाप्त कर दिया
– नीतीश कुमार की पहल पर
Inter Ministerial Group तथा रघुराम राजन समिति का गठन कांग्रेस सरकार द्वारा बिहार की माँग पर विचार करने हेतु किया गया था
– दोनों समिति ने विशेष राज्य की दर्जे की मांग को अस्वीकार कर दिया
– 2002 के बाद देश में किसी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया गया है
– भाजपा विशेष राज्य के खिलाफ नहीं है, परन्तु अब यह अवधारणा ही समाप्त हो गई
– प्रधान मंत्री ने विशेष राज्य से जितनी मदद मिलती उससे ज्यादा बिहार को 1.5 लाख करोड़ के पैकेज के माध्यम से दिया है
– बालू और शराब माफिया को सत्ता का संरक्षण मिलना बंद हो जाए तो बिहार को 20 हजार करोड़ की अतिरिक्त मदद मिल सकती हैं
– चुनाव के मौके पर यह माँग एक चुनावी स्टंट है। बिहार की जनता इन लोगों को पहचान चुकी है
– यह भी एक मिथक है कि विशेष राज्य के दर्जे से ही बिहार विकसित बन सकता है। जिन राज्यों को मिला वे कहाँ विकसित हो पाए
– देश के विकसित राज्य बिना विशेष दर्जे के विकसित बन गए
– राज्य यदि 2.5 लाख प्रत्येक गरीब परिवार को देना चाहता है तो यह भी सुनिश्चित करें कि पैसा कहां से आएगा?
– लोगों को नियुक्ति पत्र बाँट रहे हैं, परन्तु पैसे का ठिकाना नहीं और फिर ठीकरा केंद्र पर फोड़ेंगे।
वहीं उप मुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव,वित्त एवं संसदीय कार्य मंत्री विजय कुमार चौधरी और योजना एवं विकास मंत्री विजेन्द्र प्रसाद यादव ने संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस कर बिहार को वेशेष राज्य का दर्जा देने की माँग की।उपमुख्यमंत्री ने कहा कि अगर केंद्र सरकार बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देती है तो यहां काम जल्दी होगा. जातीय गणना की रिपोर्ट के आधार पर गरीबों के लिए जो काम करना है उसमें ढाई लाख करोड़ की जरूरत पड़ेगी. यदि केंद्र सरकार विशेष मदद और विशेष दर्जा दे दे तो यह काम आसानी से हो जाएगा. केंद्र सरकार को साफ करना चाहिए कि विशेष राज्य का दर्जा दिया जाएगा या नहीं. अगर हमें विशेष राज्य का दर्जा दे दिया जाता है तो कई फायदे होंगे. भूमिहीन और किसानों को भूमि देने में और बेरोजगारों को रोजगार देने समेत कई दूसरे काम आसान हो जाएंगे.उन्होने कहा बिहार को गरीबी से मुक्ति के लिए इसकी आवश्यकता है। बिहार अपने संसाधन के बूते गरीबों की विशेष मदद नहीं कर सकता है।विशेष राज्य का दर्जा मिलने पर सालाना केन्द्र से 40 हजार करोड रुपए की सहायता बढ़ाकर मिलने लगेगी।मंत्री विजय चौधरी ने कहा कि यह तो शुरुआत है. आगे-आगे देखिए क्या-क्या होता है. कहां-कहां हम लोग जाते हैं.
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