बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में
पटना, २२ अप्रैल। संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेज़ी और बांगला के उद्भट विद्वान आचार्य राम दहिन मिश्र काव्य-शास्त्र के भी मनीषी मर्मज्ञ थे। "काव्य-दर्पण" और "कवि-विमर्श"आदि अपने आलोचना-ग्रंथ में उन्होंने काव्य-शास्त्र और कवि की महिमा का अत्यंत ही हृदय-स्पर्शी चित्रण किया है। अंग्रेज़ी के सभी महान कवियों का गहरा अध्ययन रखने वाले मिश्र जी काव्य-शास्त्र में भारत के शास्त्रीय स्वरूप को ही उचित और महत्त्वपूर्ण मानते थे। उन्होंने बाल-साहित्य और पाठ्य-पुस्तकों के लेखन में भी आचार्य राम लोचन शरण की भाँति बड़ा योगदान दिया। 
यह बातें सोमवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित "पृथ्वी-दिवस" और जयंती समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि पृथ्वी को केवल पर्यावरण-प्रदूषण से ही नहीं, जन-मानस में तेज़ी से फैल रहे मानसिक-प्रदूषण से भी ख़तरा है। बल्कि यह अधिक ख़तरनाक है, क्योंकि समाज में सभी प्रकार के प्रदूषणों के पीछे मनुष्य का मानसिक-प्रदूषण ही है। आतंकवाद और अतिवाद का संकट झेल रहा संसार आज तीसरे विश्व-युद्ध के किनारे खड़ा है। भारतीय संस्कृति और विश्व-बंधुत्व के सिद्धांत को अपना कर ही, पृथ्वी की रक्षा की जा सकती है।
सुरधारा कला केंद्र, गया के सौजन्य से आयोजित इस समारोह में संस्था के निदेशक और दिव्यांग शिक्षक विपिन बिहारी ने कहा कि पर्यावरण-कार्यकर्ता के रूप में आज अनेक युवाओं को आगे आना चाहिए। जिस प्रकार मैं बिहार सरकार के एक शिक्षक के रूप में प्राप्त अपने वेतन का बहुलांश वृक्षारोपण और जागरूकता के कार्यक्रमों पर व्यय करता हूँ, उसी प्रकार अन्य लोग भी आगे आएँ। यदि पृथ्वी पर मानव-जीवन की रक्षा के लिए आवश्यक है कि पर्यावरण को अनुकूल बनाया जाए। हरे वृक्ष नहीं काटे जाएं, बड़ी संख्या में पेंड लगाए जाएं।
बिहार के पूर्व निःशक्तता आयुक्त डा शिवाजी कुमार, सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, डा विनोद कुमार बरबिगाहिया, कुमार अनुपम, ई आनन्द किशोर मिश्र, डा अर्चना त्रिपाठी तथा बाँके बिहारी साव ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर एक कवि-सम्मेलन का भी आयोजन किया गया, जिसका आरंभ चंदा मिश्र ने वाणी-वंदना से किया। वरिष्ठ कवि प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, नीता सहाय, चितरंजन लाल भारती, ई अशोक कुमार, डा अर्चना त्रिपाठी, कुमार अनुपम, आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। आरंभ में "सुरधारा" के कलाकारों सौम्या सुमन और मनीषा कुमारी ने "गणेश-वंदना" के साथ नृत्य और संगीत की प्रस्तुतियाँ दीं। मंच का संचालन ब्रह्मानंद पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।
साहित्यकार डा हुमायूँ अख़्तर, डा चंद्रशेखर आज़ाद, नन्दन कुमार मीत, मयंक कुमार मानस, राहूल कुमार, अंकित शर्मा, कुमारी मेनका, पल्लवी शर्मा, डौली कुमारी आदि हिन्दी-प्रेमी उपस्थित थे।

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