बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में जियालाल आर्य के उपन्यास


पटना, २८ अप्रैल। वरिष्ठ लेखक श्री जियालाल आर्य की लेखन शैली मोहित करती है। उनका उपन्यास "सफ़ेद चादर" एक ऐसी रचना है, जिसे पढ़ना आरंभ करने के बाद समाप्त किए बिना छोड़ने का मन नहीं करता। समाज को केंद्र में रखकर अनेक उपन्यास लिखे गए हैं, किंतु श्री आर्य का यह उपन्यास हिन्दी साहित्य में विशेष महत्त्व रखता है। 
यह बातें रविवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, बिहार के पूर्व गृह सचिव और वरिष्ठ लेखक जियालाल आर्य के उपन्यास "सफ़ेद चादर" का लोकार्पण करते हुए, बिहार विधान सभा के अध्यक्ष नंद किशोर यादव ने कही। श्री यादव ने कहा कि पुस्तक के लेखक भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी के रूप में, समाज के विभिन्न स्तरों से जुड़े रहे हैं। इनके सामाजिक सरोकारों और अनुभवों से इनकी लेखनी समृद्ध हुई है। 
समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि, लोकार्पित पुस्तक के लेखक एक संवेदनशील और गहन सामाजिक-दृष्टि रखने वाले रचनाकार हैं। "सफ़ेद चादर" में इनकी लोक-चेतना और जीवन के अनेक मूल्यों को अभिव्यक्ति मिली है। यह एक मर्म-स्पर्शी और हिन्दी उपन्यास में विशेष स्थान रखने वाली अत्यंत मूल्यवान कृति है, जिसमें आंचलिकता और ग्राम्य-जीवन के विविध पहलुओं के साथ जीवन-संघर्ष, जिजीविषा और जीवटता को शक्ति मिली है। कथा-नायिका के माध्यम से लेखक ने यह सिद्ध किया है कि जीवन और समाज के प्रति आस्था रखने वाले लोग कभी पराजित नही होते। वे समाज के होते हैं और समाज उनका हो जाता है।
समारोह के मुख्यअतिथि और राज्य उपभोक्ता संरक्षण आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति संजय कुमार ने कहा कि लोकार्पित पुस्तक के लेखक ने  अपनी प्रशासनिक सेवा की भाँति साहित्य-सेवा में भी प्रशंसनीय प्रतिष्ठा अर्जित की है। लोकार्पित पुस्तक से हिन्दी के पाठक अवश्य ही लाभान्वित होंग़े।
पुस्तक के लेखक जियालाल आर्य ने कृतज्ञता-ज्ञापित करते हुए, कहा कि, यह पुस्तक एक सच्ची कहानी पर आधारित है। इस कथा की नायिका की संघर्ष-गाथा और उनके त्याग-बलिदान का मैं साक्षी रहा हूँ। यह एक भारतीय गाँव की कहानी है, जिसके अनेक पात्र अब भी जीवित हैं। कथा-नायिका के महान संघर्ष और उनकी समाज-सेवा ने मुझे इसे उपन्यास का रूप देने के लिए प्रेरित किया। यह संघर्षरत लोगों के लिए प्रेरणादायक सत्य-कथा है। 
समारोह के विशिष्ट अतिथि और दूरदर्शन, बिहार के कार्यक्रम-प्रमुख डा राज कुमार नाहर, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, डा ध्रुव कुमार तथा डा मनोज गोवर्द्धनपुरी ने भी अपने विचार व्यक्त किए । मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद ज्ञापन सम्मेलन के प्रबंध मंत्री कृष्ण रंजन सिंह ने किया। 
इस अवसर पर, आयोजित लघुकथा-गोष्ठी में, डा शंकर प्रसाद ने "रंग" शीर्षक से, कुमार अनुपम ने "थप्पड़", डा पुष्पा जमुआर ने "नज़रिए की बात", मीना कुमारी परिहार ने "अक़्ल पर पत्थर", प्रभा कुमारी ने "जाड़े की रात”, चितरंजन लाल भारती  ने “तरक़्क़ी”, प्रियंका ने "हिन्दी का महत्त्व", बिंदेश्वर प्रसाद गुप्त ने "दंश" , नीता सहाय ने “जब अपने पर आयी” तथा डा मनोज गोवर्द्धनपुरी ने "सुख का अनुभव" शीर्षक से अपनी लघुकथा का पाठ किया।
समारोह में, डा शालिनी पाण्डेय,  नीता सहाय, नरेंद्र कुमार झा, डा चंद्रशेखर आज़ाद, डा कुंडन लोहानी, आनन्द शर्मा, अधिवक्ता दीपक कुमार, सच्चिदानन्द शर्मा, कवि पंकज वसंत, भास्कर त्रिपाठी  समेत बड़ी संख्या में सुधीजन और साहित्यकार उपस्थित थे।

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