सूरत में भाजपा उम्मीदवार मुकेश दलाल की निर्विरोध जीत का ऐलान

18वीं लोकसभा का सात चरणों मतदान और 4 जून को रिजलट आने के पहले ही भाजपा की जीत का खाता खुल गया। गुजरात की सूरत सीट से लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत का श्रीगणेश हो चुका है. यहां से भाजपा के उम्मीदवार मुकेश दलाल को निर्विरोध जीत हासिल हो चुकी है. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि कांग्रेस उम्मीदवार का पर्चा खारिज हो गया था.बचे दूसरे उम्मीदवारों पर्चा वापस कर  मुकेश दलालको निर्विरोध चुने जाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया
सूरत में एक दिन पहले ही भाजपा उम्मीदवार मुकेश दलाल की निर्विरोध जीत का ऐलान किया गया था. ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि यहां भाजपा का मुकाबला कांग्रेस से था. एन वक्त पर कांग्रेस उम्मीदवार का पर्चा निरस्त हो गया, इसके बाद यहां की सियासी पिक्चर इतनी तेजी से बदली कि 24 घंटे के अंदर सूरत का सीन पलट गया. इसे लेकर पूरे देश में पॉलिटिकल हंगामा खड़ा हो चुका है. विपक्ष सरकार से सवाल कर रहा है.

क्या है ऑपरेशन सूरत की इनसाइड स्टोरी?
सूरत में भाजपा की निर्विरोध जीत के बाद कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या कांग्रेस प्रत्याशी नीलेश कुंभाणी बीजेपी से मिले थे?, क्या नीलेश कुंभाणी ने अपनी पार्टी को अंधेरे में रखा?, नामांकन वापसी के अंतिम दिन सभी 8 उम्मीदवारों ने अचानक अपने पर्चे क्यों वापस ले लिए?, क्या सारे उम्मीदवारों की मिलीभगत थी या मामला कुछ और है? दरअसल माना ये जा रहा है कि भले ही ये जीत सीधी दिख रही हो, लेकिन इसके पीछे की कहानी कुछ और ही है. सियासी गलियारों में चर्चा है कि इसकी स्क्रिप्ट पहले ही लिखी जा चुकी थी.


कब क्या हुआ?
20 अप्रैल को सूरत में कांग्रेस कैंडिडेट नीलेश कुंभाणी के नामांकन पर्चे में गवाहों के हस्ताक्षर में गड़बड़ी की शिकायत मिली. जिला निर्वाचन अधिकारी ने इस मामले में कुंभाणी से 22 अप्रैल सुबह 11 बजे तक जवाब मांगा. 21 अप्रैल को कलेक्टर और चुनाव अधिकारी के सामने सुनवाई में हस्ताक्षर करने वाले चारों गवाह नदारद थे. इसलिए नीलेश कुंभाणी का फॉर्म रद्द कर दिया गया, और 22 अप्रैल को बीजेपी प्रत्याशी मुकेश दलाल निर्विरोध निर्वाचित हुए. अब आरोप लग रहे हैं कि बीजेपी की जीत के लिए कांग्रेस कैंडिडेट ने बीजेपी से हाथ मिला लिया. वो पार्टी को अंधेरे में रखते हुए बीजेपी के लिए पहले से काम कर रहे थे.

परिवार के सदस्य थे प्रस्तावक
कुंभाणी के प्रस्तावक पार्टी के कार्यकर्ता या कोई अन्य नहीं था, बल्कि उनका परिवार ओर पार्टनर थे. नीलेश कुंभाणी ने अपना प्रस्तावक बहनोई जगदीया सावलिया को बनाया. इसके अलावा बिजनेस पार्टनर ध्रुविन धामेलिया और रमेश पोलरा उनके प्रस्तावक थे, लेकिन फॉर्म भरते वक्त भी वो किसी को चुनाव अधिकारी के सामने नहीं ले गए. बाद में इन्हीं प्रस्तावकों ने फर्जी हस्ताक्षर का हलफनामा दिया और अंडरग्राउंड हो गए. नोटिस मिलने पर भी कोई सामने नहीं आया और कांग्रेस का चैप्टर क्लोज हो गया.


ऐसे हुई प्लानिंग
कांग्रेस के चित होने के बाद बीएसपी और बाकी छोटे दलों के आठ उम्मीदार बचे. . सोमवार को 4 अलग अलग दलों के प्रत्याशियों का नामांकन पत्र वापस कराया गया. इस तरह बीजेपी की निर्विरोध जीत का रास्ता साफ हो गया. गुजरात में पहली बार कोई नेता निर्विरोध निर्वाचित हुआ.1984 से सूरत सीट बीजेपी ही जीत रही है.

अंडरग्राउंड हैं नीलेश कुंभाणी
फिलहाल नीलेश कुंभाणी परिवार समेत अंडरग्राउंड हैं. ऐसी खबरें हैं कि जल्द ही वो बीजेपी का दामन थाम सकते हैं. सूरत में जिस तरह से उनको लेकर खबरें आ रही हैं उसके बाद उनका विरोध शुरू हो चुका है. कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ता आज हाथों में पोस्टर बैनर लेकर उनके घर पहुंचे. पोस्टर में उनको गद्दार बताया. उन पर बीजेपी से मिलीभगत का आरोप लगाया. इस मामले में कांग्रेस ने चुनाव अधिकारी के सामने तथ्य रखे हैं. पार्टी का आरोप है कि बिना हस्ताक्षर की जांच कराए फैसला सुना दिया गया. कांग्रेस के नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने चुनाव रद्द करने की मांग की है.


आम आदमी पार्टी ने दर्ज कराई शिकायत
आम आदमी पार्टी ने भी कांग्रेस उम्मीदवार के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है. गुजरात में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी गठबंधन में है. पिछले 24 घंटे से सूरत को लेकर सियासत हाई है. राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर सूरत का जिक्र करते हुए लिखा है कि- ‘जनता से अपना नेता चुनने का अधिकार छीन लेना बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान को खत्म करने की तरफ बढ़ाया एक और कदम है.’ केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी का कहना है कि आजादी के बाद से 35 कैंडिडेट निर्विरोध जीत चुके हैं. सूरत का मामला कोई पहला नहीं है.


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