झारखंड में खोयी जमीन की वापसी की भाजपा कीछटपटाहट,कार्यकारी अध्यक्ष बदले

रांची।भारतीय जनता पार्टी ने राज्यसभा सांसद आदित्य साहू को झारखंड का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त कर दिया है। वे वर्तमान कार्यकारी अध्यक्ष रविन्द्र कुमार राय का स्थान लेंगे। वह तत्काल प्रभाव से अपने पद पर काम करेंगे। एक कार्यकारी अध्यक्ष के बाद दूसरे कार्यकारी अध्यक्ष की नियुक्ति से पार्टी के कार्यकर्ताओं में असमंजस की स्थिति देखी जा रही है।अनुमान लगाया जा रहा है कि रवींद्र राय को पार्टी भविष्य में कोई और बड़ा दायित्व सौंप सकती है।
  बाबूलाल मरांडी इसके पहले भाजपा के अध्यक्ष थे। पार्टी ने झारखंड विधानसभा चुनाव के बाद उन्हें विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष नियुक्त कर दिया था। इसके बाद भाजपा में एक व्यक्ति, एक पद, के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद से भाजपा अब तक झारखंड में अपना प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त नहीं कर पाई है। पहले रविंद्र कुमार राय और अब आदित्य साहू को कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर प्रदेश की कमान संभालने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। 
रघुवर दास के सीएम रहते पार्टी में मारी अंतर्कलह और सत्ता विरीधी लहर के कारण सीएम सहित पार्टी की करारी के बाद भाजपा के सामने झारखंड में अपना आधार मजबूत करने की कड़ी चुनौती है। झारखंड मुक्ति मोर्चा ने पहले शिबू सोरेन और उसके बाद हेमंत सोरेन के नेतृत्व में आदिवासी मतदाताओं पर अपनी पकड़ मजबूत बना ली है। भारतीय जनता पार्टी ने आदिवासी क्षेत्रों में पिछले चुनाव में कमजोर प्रदर्शन किया था। अब भाजपा के सामने अपने उसे आधार वोट बैंक को वापस पाना बड़ी चुनौती बना हुआ है। भूमिहार जाति के रवीन्द्र राय के स्थान पर आदित्य साहू इस काम में भाजपा की कितनी मदद कर पाते हैं, यह देखने वाली बात होगी।61 वर्षीय आदित्य साहू लंबे समय से बीजेपी से जुड़े हुए हैं और पिछले दो दशकों में उन्होंने उपाध्यक्ष और महामंत्री जैसे कई प्रमुख पदों पर जिम्मेदारी निभाfई है। वह पेशे से शिक्षक रहे हैं और 2019 तक राम टहल चौधरी कॉलेज में व्याख्याता के रूप में कार्यरत रहे।जुलाई 2022 में वे राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए थे, जिससे उनका राजनीतिक कद और प्रभाव लगातार बढ़ता गया।
झारखंड बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के बाद से ही नए अध्यक्ष की नियुक्ति पर भी अटकलें तेज हैं।
 पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास का नाम लंबे समय से चर्चा में है, लेकिन वे भी वैश्य समुदाय से हैं। ऐसे में यह संभावना जताई जा रही है कि बीजेपी अब प्रदेश अध्यक्ष पद किसी आदिवासी या ओबीसी समुदाय के नेता को सौंप सकती है, ताकि संगठन में सामाजिक संतुलन और मजबूत हो सके। 


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