बिहार सरकार के शिक्षा विभाग में प्रशासनिक भ्रष्टाचार रोकने के लिए बड़ा वदलाव

एसीएस एस. सिद्धार्थ ने केके पाठक का पलटा सबसे बड़ा फैसला ,31 मार्च से तमाम आउटसोर्सिंग व्यवस्था समाप्त डीईओ के पास पावर का वित्तीय अधिकार छिना
 
बिहार के शिक्षा विभाग ने अब तक का सबसे बड़ा फैसला लिया है। शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव (एसीऐसी) एस. सिद्धार्थ ने तमाम डीइओ का पावर कट कर दिया है। एक अप्रैल से किसी भी डीईओ के पास कोई भी वित्तीय अधिकार नहीं होगा। कोई भी डीईओ सिविल वर्क नहीं करा पाएंगे। डीईओ के पास अब केवल शिक्षणिक कार्य कराने का अधिकार होगा। एस. सिद्धार्थ ने तय किया है कि 50 हजार रुपये तक की राशि अब सीधे स्कूल के खाते में भेजी जाएगी। स्कूलों के हेडमास्टर विद्यालय में कार्य के लिए सीधे विभाग को पत्र भेजेंगे। सिविल वर्क का काम सीधे निगम के जरिए होगा। 31 मार्च से तमाम आउटसोर्सिंग व्यवस्था समाप्त कर दी जाएगी। सभी आउटसोर्सिंग स्टॉफ हटाए जाएंगे। डीपीएम से लेकर बीपीएम तक की सेवा समाप्त कर दी जाएगी। यहां याद दिला दें कि पूर्व एसीएस केके पाठक के दौर में आउटसोर्सिंग के जरिए ये तमाम बहाली की गई थी। डीपीएम और बीपीएम की लगातार शिकायतें मिल रही थी।
एसीएस एस. सिद्धार्थ ने कहा कि यह फैसला भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी को रोकने के लिए लिया गया है। इस तरह एस. सिद्धार्थ ने केके पाठक का फैसला सीधे पलट दिया है।
   बताते हैं कि एस. सिद्धार्थ ने अलग से एक कंट्रोल रूम बनाया है। यहां से रिपोर्ट मिल रही थी कि भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी की सबसे ज्यादा शिकायतें डीपीएम और बीपीएम के स्तर पर हो रही है। कंट्रोल रूम में अब तक 500 से 600 शिकायतें मिल चुकी थी , जिसके बाद यह फैसला लिया गया है।
    एस. सिद्धार्थ ने शैक्षणिक सुधार कार्यक्रम के तहत बच्चों की क्लास रूम में उपस्थिति बढ़ाने के लिए डिजिटल अटेंडेंस के प्रयोग को बढ़ाने का आदेश दिया है। एक अप्रैल से बिहार के स्कूलों में AI टेक्नोलॉजी भी देखने को मिलेगा। पायलट प्रोजेक्ट के तहत बिहार के छह जिलों में बच्चों की बायोमेट्रिक अटेंडेंस बनेंगे। 31 मार्च के बाद बिहार के सरकारी स्कूलों में कई बदलाव दिखेंगे। यहां तक की बिहार के सरकारी स्कूलों में हाउसकीपिंग का काम भी जिला शिक्षा पदाधिकारी से छीनकर निगम को देखने को कहा गया है। केके पाठक ने स्कूलों की निगरानी के लिए आउटसोर्सिंग के जरिए डीपीएम और बीपीएम की नियुक्त की थी , लेकिन इनके खिलाफ रिश्वतखोरी की लगातार शिकायतें मिल रही थी। एसीएस ने इन शिकायतों को तबज्जो देते हुए केके पाठक का फैसला पलट दिया है।

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