बिहार में  चार लाख  नियोजित शिक्षकों का विरोध
अरुण कुमार पाण्डेय 
बिहार में नियोजित शिक्षकों की बिना शर्त सरकारीकर्मी बनाने की मांग को लेकर विरोध-संघर्ष से क्या हासिल होगा? क्या 1.70 लाख शिक्षकों की नियुक्ति की कार्रवाई रुकेगी? क्या बीपीएससी द्रारा शिक्षकों की नियुक्ति की कार्रवाई स्थगित या रुकेगी?क्या हाइकोर्ट से नियोजित शिक्षकों को न्याय मिलेगा? इन्ही सवालों के बीच 25 जून को बिहार के शिक्षक संगठनों की ओर से अगले माह पटना में डेरा डालो, विधायकों का घराव करो का आंदोलन करने की घोषणा हुई है।10 जुलाई से बिहार विधानमंडल कापांच दिवसीय मौनसून सत्र शुरुहोगा।11 जुलाई को विधानमंडल के समक्ष शांतिपूर्ण प्रदर्शन के बाद डेरा डालो विधायक आवास का घेराव का कार्यक्रम है।इसके पहले शिक्षकों की ओर से जिला स्तर पर धरना-प्रदर्शन हुआ है।उधर सरकार सुनने को तैयार नही है।बीपीएससी की परीक्षा पास करने पर ही नई नियमावली के तहत सरकारीकर्मी बनाने और बढा वेतन-सुविधओं का लाभ देने के निर्णय पर अडिग है।
सरकार की नीति और निर्णय के अनुरूप बीपीएससी 1,70 लाख शिक्षकों की नियुक्ति के लिए 12 जुलाई तक आनलाईन आवेदन के बाद 24,25,26 एवं 27 अगस्त को परीक्षा लेने की घोषणा कर चुका है ।नवंबर में रिजल्ट कर दिसम्बर में नियुक्ति का तोहफा बंटना है।
हाईकोर्ट में नियमावली के खिलाफ दायर याचिकाओं पर 29 अगस्त को सुनवाई होनी है।बिहार अध्यापक नियुक्ति नियमावली,2023 की अधिसूचना जारी होने के बाद कमियों,खामियों और जरूरतों के हिसाब से शिक्षा विभाग कई आदेश जारी कर चुका है ।पता नहीं नियुक्ति पत्र बांटने तक आदेश जारी करने की जरूरत होगी?
बीपीएससी की परीक्षा को लेकर एक ओर चार लाख नियोजित शिक्षकों का भविष्य दांव पर है वहीं दूसरी ओर शिक्षा डिग्रीधारी एव पात्रता परीक्षा पास शिक्षक अभ्यर्थियों की चुनौती बढ्ती जा रही है।अभी तक तीन लाक अभ्यर्धी नौकरी की आस में थे।नियोजित शिक्षकों के बीपीएससी परीक्षा के बहिष्कार के बाद सभी शिक्षक अभ्यर्थियों को नौकरी नहीं मिलने वाली है। पद से लगभग दूनी संख्या में शिक्षक अभ्यर्थी हैं। फिलहाल अगले माह होनेवाली पात्रता परीक्षा के अभ्यर्थियों को भी आवेदन करने और सफल होने पर बीपीएससी की परीक्षा में सफल अभ्यर्थियों सूची में जगह दैने का नया निर्णय हुआ है।यह तय की शिक्षक अभ्यर्थी नौकरी पाने का अवसर नहीं गवायेंगे।इस तरह बीपीएससी की परीक्षा शिक्षकअभ्यर्थियों लिए ही अवसर बन आया है।
शिक्षा मंत्री प्रो. चंद्रशेखर ने रविवार को बयान दिया. उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नियमावली जो बनी है वह राजहित में है. शिक्षकों के द्वारा प्रदर्शन के सवाल पर उन्होंने कहा कि प्रदर्शन करना शिक्षकों का अधिकार है. परीक्षा उन्हें पास करना ही होगा. बिहार अपनी विरासत को पाना चाहता है. बिहार शिक्षा के क्षेत्र में जो हमारा ज्ञान की भूमि का विरासत रहा है, उसे फिर से ज्ञान के क्षेत्र में विश्वस्तरीय छवि बनाने का प्रयास कर रहा है.
 वहों बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष, रघुवंश प्रसाद सिंह एवं महासचिव सह पूर्व सांसद, शत्रुघ्न प्रसाद सिंह ने एक बयान में कहा है कि असंवैधानिक अध्यापक नियुक्ति नियमावली 2023 के प्रतिरोध में 01 मई से सत्याग्रह कार्यक्रम चलाये जाने के बावजूद और सरकार द्वारा बार-बार वार्त्ता के लिए अनुरोध को ठुकराये जाने के कारण विवश होकर विधान मंडल सत्र आरंभ होने के दूसरे दिन 11 जुलाई को शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने का निर्णय लिया गया है। इस प्रदर्शन में बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ, बिहार नगर पंचायत प्रारंभिक शिक्षक संघ और परिवर्तनकारी शिक्षक संघों के अतिरिक्त अन्य संगठनों के भी हजारों-हजार की संख्या में भाग लेने शिक्षक 11 जुलाई को 11 बजे पटना पहुँचेंगे। यह प्रदर्शन पूर्णत: शांतिपूर्ण और अहिंसक होगा। जबतक राज्यकर्मी की दर्जा की घोषणा विधान मंडल के इसी सत्र में सरकार नहीं करेगी तबतक विधान मंडल के सदस्यों के आवास पर उस क्षेत्र के शिक्षक डेरा डालेंगे और उनपर राज्यकर्मी का दर्जा देने पर जोर डालने की आवाज को सदन के अंदर उठाने के लिए नैतिक दबाव डालेंगे।
अध्यापक नियुक्ति नियमावली 2023 की कंडिका-8 में पूर्व से कार्यरत पंचायत और नगर निकाय विद्यालयों के शिक्षकों को भी आयोग द्वारा विज्ञापित पदों पर नई नियुक्ति के लिए परीक्षा में बैठने की बाध्यता निर्धारित की गई है।
शिक्षक संगठनों का कहना कि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद-14 का उल्लंघन है, क्योंकि एक ही प्रकार के विद्यालय में एक ही तरह के पाठ्यक्रम पढ़ाने वाले तीन-तीन वर्गों के शिक्षक बहाल किये जायेंगे। 
शिक्षा विभाग ने प्रशासी पदवर्ग के द्वारा मात्र एक लाख अस्सी हजार पदों की स्वीकृति प्राप्त की है लेकिन विज्ञापन में एक लाख सत्तर हजार ही रिक्तियों को भरने के लिए आवेदन आमंत्रित किये गये है और पूर्व से कार्यरत 04 लाख से अधिक शिक्षकों को भी उन्हीं रिक्तियों के विरूद्ध राज्यकर्मी के दर्जा प्राप्त करने के लिए आयोग की परीक्षा में उतीर्णता की शर्त रखी गई है। जो नैसर्गिक न्याय के विरूद्ध है। अधिकतम 20 वर्षों और 16 और 17 वर्षों तक के भी नियुक्त शिक्षकों को फिर से नई नियुक्ति का अपमानजनक, अन्यायपूर्ण आदेश देना संविधान विरोधी एवं अराजकतापूर्ण है। यह नियमावली बेरोजगारी बढ़ाने वाली है। पूर्व से कार्यरत शिक्षकों पर छँटनी की भी तलवार लटकने वाली है। 
विधान मंडल के 100 से भी ज्यादा  सदस्यों ने बिना शर्त राज्यकर्मी का दर्जा देने का लिखित समर्थन किया है  इसके साथ ही साथ पंचायत स्तर से लेकर स्थानीय निकाय एवं माननीय सांसदों ने भी पूर्व से कार्यरत शिक्षकों को राज्यकर्मी का दर्जा देने की मांग का समर्थन किया है।
महागठबंधन सरकार का बाहर से समर्थन दे रहे वामदलों के लिए भी शिक्षकों का आंदोलन लिटमस टेस्ट है।सरकापर दबाब बनाने के लिए सड़क पर शिक्षकों के आंदोलन का शमर्थन दने वाले वामदल सदन में क्या नियमावली को खारिज करने में विपक्ष का साथ देंगे।परिषद में फिलहाल मुख्य विपक्ष भाजपा है।हम के संतोष सुमन भी विपक्ष के साथ दिखेंगे।
   





Top