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नए संसद भवन में सेंगोल स्थापित
माउंटबेटन ने सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर सेंगोल सौंपा था पंडित नेहरू को
पद्मा सुब्रमण्यम की एक चिट्ठी से खुला सेंगोल का राज।
पीएम मोदी के आदेश के बाद सेंगोल को खोजने में लगा दो साल।
1947 में सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक बना सेंगोल नए संसद भवन में स्थापित हुआ है। यह भी सेंगोल है जिसे साल 1947 में आजादी के वक्त आखिरी वायसराय माउंटबेटन ने सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर पंडित नेहरू को सौंपा था। नामित सेंगोल इलाहाबाद संग्रहालय में सुरक्षित है। यह सेंगोल एक ऐसी महत्वपूर्ण धरोहर है , जिसे भुला दिया गया था। आजादी के बाद से अब तक कुछ गिने - चुने लोग ही थे जो इसके महत्व को जानते थे।
गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को प्रेस कांफ्रेंस कर सेंगोल के बारे में जानकारी दी और इसके महत्व के बारे में बताया। इस दौरान यह भी बताया गया कि अब तक सेंगोल कहां और किस हालत में था। आखिर इतने दिन सेंगोल कहां था और पीएमओ को इसकी जानकारी कहां से मिली ? सेंगोल के बारे में जानकारी देते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि पदाधिकारियों को सेंगोल ढूंढने का टास्क खुद पीएम मोदी ने दिया था। उन्होंने नए संसद भवन के निर्माण के दौरान इससे जुड़े सभी तथ्य और इतिहास पर रिसर्च करने के आदेश दिए थे। उन्हें सेंगोल के बारे में एक चिट्ठी से जानकारी हुई थी। इस चिट्टी को बहुचर्चित नृत्यांगना पद्मा सुब्रह्मण्यमने प्रधानमंत्री कार्यालय को लिखा था।
प्रधानमंत्री कार्यालय को सेंगोल के बारे में तकरीबन दो साल पहले पता चला था। चर्चित नृत्यांगना पद्मा सुब्रमण्यम ने पीएमओ को लिखी चिट्ठी में इसका जिक्र किया था। द हिंदू की एक रिपोर्ट के हिसाब से पद्मा सुब्रमण्यम ने इस चिट्ठी में सेंगोल के महत्व के बारे में जानकारी दी थी। इसके लिए उन्होंने एक तमिल मैगजीन में प्रकाशित आर्टिकल का हवाला भी दिया था। इस आर्टिकल में इस बात का जिक्र था कि 14 अगस्त 1947 की रात को सत्ता हस्तांतरण के तौर पर जवाहर लाल नेहरू ने सेंगोल को स्वीकार किया था।
पद्मा सुब्रमण्यम भरतनाट्यम की प्रसिद्ध नृत्यांगना हैं। उनका जन्म 1943 में हुआ था। पिता प्रसिद्ध फिल्म निर्माता थे और मां संगीतकार। पद्मा सुब्रमण्यम ने अपने पिता के डांस स्कूल में महज 14 साल की उम्र में ही बच्चों को डांस सिखाना शुरू कर दिया था। उन्हें अब तक कई अवार्ड और पुरस्कार मिल चुके हैं। 1983 में वह संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार जीत चुकी हैं। इसके अलावे उन्हें 1981 और 2003 में क्रमश: पद्मश्री और पद्मभूषण पुरस्कार भी मिल चुके हैं। इसके अलावे सोवियत संघ की ओर से नेहरू पुरस्कार और एशिया में विकास और सद्भाव के लिए जापान के फुकुओका का एशियाई संस्कृति पुरस्कार मिला है।
इस अमूल्य धरोहर के बारे में बताने वाला आर्टिकल मई 2021 में प्रकाशित हुआ था। एक रिपोर्ट के मुताबिक जब पद्मा सुब्रमण्यम ने इसे पढ़ा तो उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि इस धरोहर के बारे में सबको जानना चाहिए। इसके बाद ही उन्होंने पीएमओ को चिट्टी लिखकर यह मांग की थी कि पीएम को इसके बारे में देशवासियों को बताना चाहिए।
पीएमओ ने चिट्ठी को बेहद गंभीरता से लिया। पीएम मोदी को इसकी जानकारी दी गई। खास तौर पर पीएम मोदी ने सेंगोल को ढूंढने का आदेश दिया। अफसरों की टीम ने इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट की मदद से इसकी खोज शुरू कर दी। लेकिन कुछ पता नहीं चल पा रहा था। इसके बाद नेशनल अभिलेखागार में उस समय से अखबारों को ढूंढ गया। इससे पता चला कि सेंगोल को तमिलनाडु के वुम्मिडी बंगारू फैमिली ने बनाया था। अफसरों की टीम ने जब बंगारु फैमिली से बात की तब उन्होंने बताया कि सेंगोल को उन्होंने ही बनाया था। लेकिन अब वह कहां है इसके बारे में उन्हें पता नहीं है। इसके बाद देश भर के अन्य म्यूजियम में भी इसके बारे में पता लगाने का आदेश दिया गया। सेंगोल कैसा दिखता है इसकी जानकारी भी बेहद कम लोगों के पास थी।
आखिरकार सेंगोल नुमा एक छड़ी इलाहाबाद के आनंद भवन में मिल गई। किसी को पता नहीं था कि यही सेंगोल है। पत्र - पत्रिकाओं में भी इसकी फोटो नहीं थी। आखिरकार इस सेंगोल के चित्र को तमिलनाडु के उन्हीं बंगारु फैमिली के पास ले जाया गया तब उन्होंने उस कलाकृति को पहचान लिया। उनके पास इसकी फोटो भी थी। दरअसल 1947 में वुम्मिडी एथुराजुलू और वुम्मिडी सुधाकर ने अन्य शिल्पकारों के साथ मिलकर इसे बनाया था। उस समय सोने - चांदी से निर्मित सेंगोल की लागत 15 हजार से अधिक थी। अब वे दोनों भाई भी 28 मई को होने निर्धारित कार्यक्रम का भी हिस्सा बनेंगे।
सर्वविदित है कि सेंगोल शब्द " सेम्मई " से आया है। इसका अर्थ होता है " नीति परायणता "। सेंगोल एक प्रकार का राजदंड है। 09 वीं सदी में चोल राजवंश में सेंगोल के जरिए सत्ता का हस्तांतरण होता था। साल 1947 में सी. राजगोपालाचारी ने पंडित नेहरू को सेंगोल के जरिए सत्ता हस्तांतरण का सुझाव दिया था। उन्होंने इस सुझाव को स्वीकार कर इसी तरह से माउंटबेटन से सत्ता ग्रहण किया।
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