अब शराबबंदी से संबंधित केस भी समाप्त करने का विचार करे सरकार
अरुण कुमार पाण्डेय 
बिहार में शराबबंदी लागू करने के तौर-तरीके पर शुरू से ही सवाल होता रहा है। बीते सात वर्षों से शराबबंदी के लेकर कठिन चुनौती का सामना कर रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी अच्छी जिद को लेकर इसे समाप्त करने को तैयार नहीं हैं। कोर्ट की फटकार और आलोचना, विपक्ष के तंज और विरोध और सहयोगियों की दबी जुबान सलाह के आगे मुख्यमंत्री ने जहरीली शराब से मौत होने पर पीड़ित परिवार की सुधि लेने की ठानी है।यह शराबबंदी लागू होने के बाद मुख्यमंत्री के पीछे हटने का दूसरा बडा कदम है। पहला कदम शराब पीने पर पहली बार पकड़े जाने पर थाने से ही जमानत पर छोड़ देने का लिया गया है। वस्तुतः सख्त कानून के बल शराबबंदी लागू करने का परिणाम निराशाजनक रहा है। नित्य शराब की खेप और मनमानी कीमत पर इसकी होम डिलवरी से कोई भी इंकार नहीं कर सकता। शराब माफिया का आगे प्रशासन बौना हो गया है। एक ओर शराबबंदी से सरकारी खजाने को सैकडों अरब की चपत लग रही है, वहीं प्रशासनिक महकमा और कारोबारी मालामाल हो रहे हैं। अब तो बाहर से शराब की खेप के साथ शराब बनाने का गोरखधंधा भी फलफूल रहा है।शराबंदी कानून के उल्लंघन से संबंधित करीब 3.61 लाख प्राथमिकी  दर्ज हुई है।
-5 लाख 17 हजार गिरफ्तारी हुई है।
-25 हजार अभी भी जेल में हैं।इनलोगों में
-90% एससी/एसटी/इबीसी हैं।
शराब वंदी के केस के बोझ से कोर्ट परेशान है। अधिसंख्य गरीब और कमजोर वर्ग के ही लोग केस में फंसे और गिरफ्तार हुए हैं। शराबबंदी लागू होने के बाद इसके फायदे संबंधी रिपोर्ट वास्तविकता को चिढाते रही है। 
लोकसभा चुनाव निकट आते देख 
जहरीली शराब से मौत पर मुआवजा देने की घोषणा के साथ सियासी राजनीति होना स्वाभाविक है। हाल तक शराब पीओगे तो मरोगे के सरकारी रुख में बदलाव के साथ अब केस भी वापस लेने की मांग भी 
विचारणीय है। शराबबंदी संबंधी कानून भी मुआवजा का प्रावधान है।पर यह मुआवजा जहरीली शराब के कारोबारी से वसूल कर दिया जाना है। इसी तरह के मामले में पहली बार सरकार ने गोपालगंज में सरकारी खजाने से मदद दी गयी थी ।अब इसका व्यापक विस्तार होना है।आधिकारिक तौर पर कुल 199 लोगों की मौत हुई है. अगर इसमें संदिग्ध जहरीली शराब से हुईं मौतों को शामिल किया जाता है तो ये संख्या बढ़कर 269 हो जाती है.इसके अलावा साल 2016 से इस संबंध में 30 मामले दर्ज किए गए हैं, लेकिन किसी भी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सका है. पश्चिम चंपारण (मोतिहारी ) ज़िले में ज़हरीली शराब पीने से 26 लोगों की मौत हुई है. ये आंकड़ा अभी पुलिस रिपोर्ट में शामिल नहीं किया गया है.2016 के गोपालगंज जहरीली शराब से हुई मौत के मामले में मार्च 2021 में निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए 13 लोगों को पटना उच्च न्यायालय ने पिछले साल जुलाई में बरी कर दिया था।
आज मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने पत्रकारों से बातचीत करते हुये कहा कि 01 अप्रैल 2016 यानि शराबबंदी लागू होने के बाद से जिनकी मृत्यु जहरीली शराब पीने से हुयी है, उनके आश्रितों को मुख्यमंत्री राहत कोष से 4 लाख रुपये दिये जायेंगे ।
उन्होंने कहा कि सामान्य तबके के गरीब परिवार के लोग जहरीली शराब पीकर मर जाते हैं, यह बहुत दुःखद है। अब जिस परिवार का कोई मरा है उस परिवार के लोग साफ तौर पर ये बता दें कि ये हमारे परिवार के सदस्य हैं और इन्होंने कहां से शराब खरीदी और पी थी ?ये सब लिखित रूप में जिलाधिकारी के यहां भेजना होगा। अगर पीड़ित परिवार की ओर से ये सब लिखित रूप में जिलाधिकारी के यहां भेज दिया जाएगा तो हमने यह तय कर दिया है कि पीड़ित परिवार को मुख्यमंत्री राहत कोष से 4 लाख रुपये की मदद दी जाएगी।

मुख्यमंत्री ने कहा कि यह अभी ही नहीं बल्कि 01 अप्रैल 2016 से शराबबंदी लागू होने के बाद से उन सभी पीड़ित परिवारों को भी जिनके यहां जहरीली शराब पीने से किसी की मृत्यु हुई है, उन्हें भी ये मदद दी जाएगी। हमने जो आज कहा है, उसे लेकर मुख्य सचिव से लेकर अन्य अधिकारी सभी को निर्देश दे देंगे।

जहरीली शराब से हुई मौत से संबंधित पत्रकारों के प्रश्न के जवाब में मुख्यमंत्री ने कहा कि इससे हमें बहुत दुःख हुआ है, भीतर से तकलीफ हो रही है कि कैसे कोई पी लेता है और मर भी जाता है। इतनी ज्यादा कोशिशों के बाद भी यह सब हो रहा है । उनको ये भी कहना होगा कि शराब नहीं पीनी चाहिए। हमसब लोगों को प्रेरित करेंगे कि शराब नहीं पीनी चाहिए । हमलोग शराबबंदी के पक्ष में हैं। इधर दो-तीन सालों से हम देख रहे हैं कि बार-बार समझाने के बावजूद लोग जहरीली शराब पीकर अपनी जान गंवा दे रहे हैं। हर चीज के लिए कानून बना हुआ है, इसके बाद भी अगर कोई कुछ बोलता है तो उसका क्या कहना ।



शराबबंदी के प्रभावी नियंत्रण के पत्रकारों के सवाल पर मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्ष 2016 में शराबबंदी लागू की गई और सभी पार्टियों की सहमति से इसे लागू किया गया। हमलोग निरंतर अभियान चलाते रहे हैं। इससे कितने लोगों ने शराब का सेवन करना छोड़ दिया। इधर जो घटनाएं घट रही हैं, अभी कुछ दिन पहले और फिर वर्ष 2021 के अंत में और इसके बाद फिर से घटना घटी है। आपको मालूम है कि जब वर्ष 2016 में हमलोगों ने शराबबंदी लागू की थी और फिर जहरीली शराब का मामला आया तो पीड़ित परिवार को राज्य सरकार की ओर से मदद दी गई। फिर बाद में कोई कोर्ट चला गया तो वो पेंडिंग रह गया। दो दिन पहले हम जो देखे, हमको बड़ा दुःख हुआ। हमने तुरंत अपने अधिकारियों के साथ विमर्श किया और कहा कि आपलोग इतनी मेहनत कर रहे हैं और जो भी गड़बड़ करता है उसकी गिरफ्तारी करते हैं। हमलोग इतना ज्यादा अभियान चलाए लेकिन इधर लगातार जहरीली शराब का मामला सामने आ रहा है। वर्ष 2021 के अंत में और वर्ष 2022 में समाज सुधार अभियान चलाकर हमने बिहार में घूम-घूमकर इसके बारे में लोगों को जागरूक और सचेत किया लेकिन कोई भी काम करिएगा तो शत-प्रतिशत सफल नहीं हो सकता है। जहरीली शराब की भट्ठियों को ध्वस्त किया जा रहा है, ये सब तो हो ही रहा है लेकिन इसके बाद भी कुछ हो रहा है तो हम पीड़ित परिवार को मदद करेंगे। हम सभी लोगों को मुख्यमंत्री राहत कोष से से मदद करेंगे। शराबबंदी लागू होने के बाद से यानी 01 अप्रैल 2016 से जो भी पीड़ित परिवार होंगे उन्हें मदद दी जाएगी।

शराबबंदी को लेकर पुलिस की भूमिका से संबंधित पत्रकारों के प्रश्न पर मुख्यमंत्री ने कहा कि अरेस्टिंग की कोई बात नहीं है, मौत हुई है। अरेस्टिंग तो गड़बड़ करनेवालों की होती है, जो शराब का धंधा करते हैं। संविधान को देख लीजिए। कानून बना हुआ है, राज्यों को अधिकार दिये गये है, कई राज्यों ने पहले भी शराबबंदी कानून को लागू किया है, हमने भी किया है, यहां पर पहले भी हुआ था और फिर अब हमने किया है, सात साल हो गये और अब आठवां साल शुरू हो गया है। हम बराबर सब जगह बोलते रहते हैं कि शराब बुरी चीज है। बापू ने क्या कहा था, याद करिए। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट आई है ।दुनियाभर से उसे भी हम लोगों के बीच बताते रहते है। उसके बाद भी अपने बिहार में इस तरह की घटना घट रही है तो हम मदद तो कर देंगे लेकिन पीड़ित परिवार को एश्योरेंस देना होगा।



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